महाभारत, विश्व का इकलौता ऐसा युद्ध जिसका इतिहास सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर है। महाभारत के युद्ध में देश के सभी राजा, महाराजाओं ने हिस्सा लिया। लेकिन सिर्फ श्रीबलराम और रुक्मी ही ऐसे दो व्यक्ति थे जिन्होंने इस युद्ध में भाग नहीं लिया था। वहीं इनके अलावा एक और ऐसा राज्य था, जिसके राजा ने निष्पक्षता का परिचय देते हुए महाभारत का युद्ध लड़ने से साफ इंकार कर दिया। मगर उन्होंने इस महायुद्ध में एक अहम किरदार निभाया जिसके बिना महाभारत के युद्ध में सैनिकों का इतने समय तक टिके रहना संभव नहीं होता।
दरअसल, हम बात कर रहे हैं दक्षिण के राजा उडुपी नरेश की। जब पांडव और कौरव दोनों ही सभी राज्यों के राजाओं को अपने पक्ष में आने के लिए मनाने का काम कर रहे थे, तो दोनों ही पक्षों ने राजा उडुपी नरेश को भी अपने-अपने तरीकों से मनाने की भरपूर कोशिश की। बावजूद हजार कोशिशों के उडुपी ने निष्पक्ष रहने का फैसला किया।
लेकिन जब ये बात श्री कृष्ण तक पहुंची तो भगवान श्री कृष्ण ने उडुपी नरेश को अपना पक्ष चुनने के लिए कहा, जिसका जवाब देते हुए राजा उडुपी नरेश ने श्री कृष्ण से कहा कि, हे कृष्ण! इस समय हर कोई युद्ध के लिए बेचैन है। मगर किसी के भी मन में एक बार ये ख्याल नहीं आया कि दोनो ओर से लड़ने के लिए तैयार खड़ी इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध कैसे होगा ?” और अपने इसी जवाब के साथ राजा उडुपी नरेश ने श्रीकृष्ण से कहा कि वो इस युद्ध में निष्पक्ष रहते हुए अपनी पूरी सेना के साथ दोनों पक्षों के सैनिकों के लिए भोजन बनाने का काम करेंगे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, केवल 18 दिन चले इस युद्ध में कुल मिलाकर सवा करोड़ योद्धा-सैनिक मारे गए थे। इनमें करीब 70 लाख कौरवों की तरफ से थे, तो वहीं 44 लाख सैनिक व योद्धा पांडव सेना के थे। कहा जाता है कि इस महायुद्ध में दोनों तरफ से कुल मिलाकर 18 अक्षौहिणी सेनाएं लड़ी थीं। जिनमें 11 कौरवों के पास और 7 पांडवों के पास थी।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि एक अक्षौहिणी सेना में कुल 21,870 रथ, 65,610 घुड़सवार, 21,870 हाथी और 1,09,350 पैदल योद्धा हुआ करते थे। ऐसे में अठारह अक्षौहिणियों के हिसाब से महाभारत में कुल मिलाकर 1,14,16,374 सैनिक योद्धा थे। तो अब अंदाजा लगाईए कि इतनी बड़ी सेना के लिए उस युग में राजा उड्डुपी नरेश ने भोजन का प्रबंध कैसे किया होगा और सबसे बड़ा सवाल यहां यह है कि आखिर उन्हें इस बात का अंदाजा कैसे लगता होगा कि आज युद्ध में कितने सैनिक मारे जाएंगे और कितने बाकी सैनिकों के लिए उन्हें भोजन का प्रबंध करना है ताकि भोजन व्यर्थ भी ना जाए।
आपको जानकर हैरानी होगी कि जब पहले दिन राजा उडुपी ने सभी योद्धाओं के लिए भोजन का प्रबंध किया, तो उस दिन अन्न का एक भी दाना व्यर्थ नहीं गया। इसी तरह आगे भी ये सिलसिला यूं ही जारी रहा। हालांकि राजा के लिए समय के साथ जैसे-जैसे योद्धाओं की संख्या कम होती गई वैसे वैसे भोजन बनाने की जिम्मेदारी भी कम होती गई। हालांकि सभी के लिए ये बात हैरान करने वाली थी कि आखिर राजा उडुप्पी किस तरह से उतने ही सैनिकों के लिए भोजन तैयार करते थे जितने सैनिक युद्ध से वापस जिंदा लौट आते थे। आखिर उन्हें कैसे मारे गए सैनिकों का इतना सही अंदाजा लगता था?
मगर इस बीच सबके लिए ये बात हैरान करने वाली थी कि राजा कैसे उतने ही योद्धाओं के लिए खाना बनाते थे जो युद्ध से जीवित लौट आते थे। उन्हें मारे गए सैनिकों का इतना सटीक अंदाजा कैसे लग जाता था।
हालांकि ये सवाल उस समय भी सभी को परेशान कर रहा था। ऐसे में युद्ध खत्म होने के बाद एक दिन युधिष्ठिर ने राजा उडुपी से पूछ ही लिया, जिसके जवाब में उडुपी ने कहा कि, इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है, ये सब कृष्ण की माया है। दरअसल, उन्होंने युधिष्ठिर को बताया कि श्रीकृष्ण को रात में मूंगफली खाना पसंद है ऐसे में युद्ध के दौरान वह उनके लिए हर दिन गिन कर मूंगफली रखते थे और उनके खाने के बाद वो गिन कर देखते थे कि उन्होंने कितनी मूंगफली खायी है। वे जितनी मूंगफली खाते थे, उससे ठीक 1000 गुणा ज्यादा सैनिक अगले दिन युद्ध में मारे जाते थे। जैसे कि अगर उन्होंने 50 मूंगफली खाई तो उडुपी को अंदाजा हो जाता था कि अगले दिन 50,000 योद्धा मारे जाएंगे। बस इसी हिसाब से उडुपी नरेश अगले दिन का भोजन तैयार करते थे। इस तरह से कभी भी भोजन व्यर्थ नहीं होता था।
ये कहानी महाभारत के उन चंद कहानियों में से एक है जिसका जिक्र बहुत ही कम सुनने को मिलता है। हालांकि कर्नाटक के उडुपी जिले में बने कृष्ण मठ में ये कथा हमेशा सुनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस मठ की स्थापना उडुपी के सम्राट द्वारा ही करवाई गयी थी जिसे बाद में श्री माधवाचार्य जी ने आगे बढ़ाया।