जहां आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि चाहें इंसान हो, पशु हो या पौधे-पक्षी.. हर जीवित प्राणी में आत्मा होती है। जिसके चलते किसी भी जीव को नुकसान पहुंचाना गलता माना जाता है। मगर जैन साधु इस बात को काफी सख्ती से मानते हैं। वो किसी भी जीव को जाने-अनजाने हानि नहीं पहुंचाना चाहते। ऐसे में वो कहीं भी आने-जाने के लिए केवल पदयात्रा करते हैं। और इस बात का बहुत ध्यान रखते हैं कि जाने-अनजाने कोई छोटे से छोटा जीव भी उनके कदमों के नीचे ना कुचला जाए।
इतना ही नहीं कई साधु अपने मुंह पर सफेद मास्क लगाकर रखते हैं। ताकि किसी भी जीव को उनके मुंह से निकली गर्मी के कारण नुकसान ना हो। अगर आप देखें तो उनके जीवन का हर भाग अहिंसा से जुड़ा है। आपको शायद ना मालूम हों मगर जैन लोग ना केवल शाकाहारी होते हैं। बल्कि वो प्याज, आलू और गाजर जैसी जड़ों से निकली सब्जियों का भी परहेज करते हैं। क्योंकि इनका मानना है कि इन सभी में भी जीवन के कुछ हिस्से होते हैं।
इसके अलावा आपने अधिकतर जैन धर्म का पालन करने वाले लोगों को केवल फाइनांस, ट्रेड या कॉमर्स सेक्टर में व्यापार करते देखा होगा। जीवदया का पालन करते हुए जैन लोग सिल्क, लेदर या एनिमल प्रोडक्ट से जुड़ी किसी भी वस्तु का ना तो इस्तेमाल करते हैं और ना इनसे जुड़े बिजनेस का हिस्सा बनते हैं।
आमतौर पर जैन साधु हमेशा कहीं ना कहीं यात्रा करते रहते हैं और ज्यादा समय तक कहीं ठहरते नहीं हैं लेकिन चातुर्मास के समय उन्हें चार महीनों तक घोर तपस्य करने के लिए एक ही जगह रूकता पड़ता है। लेकिन ऐसा क्यों.. दरअसल, चौमास या चातुर्मास.. बारिश के चार महीनों को कहा जाता है। इस दौरान हमारे वातावरण में कई ऐसे जीव बाहर निकल आते हैं। जिन्हें इंसान देख नहीं पाते.. सड़कों पर बारिश के चलते पानी भर जाता है जिसमें कई जीव भी होते हैं। ऐसे में अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले जैन साधु 4 महीनों तक कहीं यात्रा नहीं करते बल्कि मंदिरों में पूजा पाठ करते हुए बीताते हैं। ये चार महीनें उनके लिए घोर तपस्या, ध्यान और व्रत के लिए होते हैं।
इन्हीं चार महीनों के दौरान आता है जैन धर्म का सबसे बड़ा त्योहार पर्युषण.. जिसका अर्थ है एक साथ आना.. पर्युषण पर्व का इतिहास करीब 2500 साल पुराना है कहते हैं कि कि भाद्र मास में शुक्ल पंचमी पर भगवान महावीर ने पर्युषण का अभ्यास शुरू किया था। जहां श्वेतांबर जैनियों के लिए ये पर्व 8 दिनों के लिए रहता है तो वहीं दूसरी ओर दिगंबर जैन इस पर्व को 10 दिनों तक मनाते हैं।
इस पर्व के दौरान जैन साधु एवं साध्वी जैन समुदाय के लोगों के साथ रहते हैं और उन्हें धार्मिक मान्यताओं के बारे में ज्ञान एवं मार्गदर्शन देते हैं। ये पर्व 5 जरूरी सिद्धांतों पर केंद्रित है। इन 8-10 दिनों के दौरान जैन सूर्यास्त होने से पहले खाना खाते हैं और पानी भी उबालकर पीते हैं। इन दिनों जैन हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन भी नहीं करते। वे केवल जैन ग्रंथ और धार्मिक साहित्य पढ़ते हैं, वो तप और साधना करते हैं साथ ही जैन साधुओं के उपदेश सुनते हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि अक्टूबर 2016 में हैदराबाद की रहने वाली 13 साल की अराधना ने चौमास के समय 68 दिनों तक उपवास किया था तब वो सिर्फ 8वीं क्लास में पढ़ रही थी। लेकिन जैसे ही अराधना का उपवास खत्म हुआ उसके ठीक दो बाद अस्पताल में उसकी धड़कनें रूकने से मौत हो गई। अराधना की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार को शोभा यात्रा कहकर संबोधित किया गया। वहीं जैन धर्मगुरूओं ने उसे बाल तपस्वी का नाम भी दिया।
लेकिन सवाल वही है.. कि आखिर क्या कितना सही और कितना नहीं है..