विश्वभर में प्रसिद्ध भगवान श्री कृष्ण का बांके बिहारी मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन में स्थित है। यहां हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु बांके बिहारी के दर्शन के लिए आते हैं। वैसे तो श्री कृष्ण की लीला का हर कोई दिवाना है। उनके प्रेम में भक्त सिर्फ भारत से नहीं बल्कि दुनियाभर के दूसरे देशों से भी वृंदावन दर्शन करने के लिए आते हैं, और कुछ तो एक बार यहां आकर यहीं के होकर रह जाते हैं।
खैर, वृंदावन की हर गली में भी श्री कृष्ण की मौजूदगी लोगों को महसूस होती है। मगर बात करेंगे बांके बिहारी मंदिर की, तो इस मंदिर से जुड़ी कई प्रचलित कहानियां हैं। जो आज भी लोगों के लिए बिल्कुल रहस्य बनी हुई हैं। जैसे अगर आप कभी बांके बिहारी मंदिर गए होंगे, तो आपको मालूम होगा कि वहां श्री कृष्ण की प्रतिमा के आगे पुजारी हर मिनट-2 मिनट में पर्दा डालते हैं। ताकि कोई भी श्रद्धालु ज्यादा देर तक उन्हें ना देख सके। लेकिन क्या आपने कभी इसके पीछे छिपे कारण को जानने की कोशिश की है। अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, लगभग 400 वर्ष पहले एक श्रद्धालु बांके बिहारी मंदिर में जब दर्शन के लिए आया, तो वो काफी देर तक भगवान श्री कृष्ण को निहारता रहा। उसकी आंखों में प्रेम देखकर भगवान इतने प्रसन्न हुए कि जब वो जाने लगा तो श्री कृष्ण भी उसके साथ चल दिए। हालांकि पुजारी ने जैसे ही ये नज़ारा देखा उसने तुरंत भगवान को मनाकर वापस मंदिर चलने का आग्रह किया। जिसके बाद से बांके बिहारी मंदिर में भगवान की प्रतिमा के आगे पर्दा डालने की परंपरा शुरू हो गई। यानी कि 400 वर्ष पहले तक ये परंपरा वहां नहीं थी। इससे पहले श्रद्धालु जितनी देर चाहें उतनी देर तक भगवान के दर्शन कर सकते थे। लेकिन इस घटना के बाद से एक कहावत काफी लोकप्रिय हुई कि बांके बिहारी को जो भी एक टक निहारता है, भगवान भी उसी के होकर रह जाते हैं।
आपको बता दें कि भगवान बांके बिहारी मंदिर का निर्माण 1862 में हुआ था। यहां मौजूद बांके बिहारी की प्रतिमा भी काले पत्थर से बनी है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मूर्ति को किसी ने बनाया नहीं था। बल्कि ये प्रतिमा अपने आप उत्पन्न हुई थी। मान्यता है कि श्री हरिदास की नि:स्वार्थ भक्ति से प्रसन्न होकर बांके बिहारी स्वंय वृंदावन के निधिवन में प्रकट हुए थे। इतना ही नहीं, ये प्रतिमा अपने आप में ही बेहद खास है। क्योंकि इसमें राधा और कृष्ण दोनों की छवि दिखाई देती है। इसीलिए बिहारी जी मूर्ति पर आधा महिला का श्रृंगार और आधा पुरूष का श्रृंगार किया जाता है।