हमारे देश भारत में लोकसभा चुनावों का दौर चल रहा है, चार चरणों की वोटिंग पूरी हो चुकी है और पांचवे चरण के लिए अब 20 मई को मतदान होगा। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की 49 सीटों के लिए मतदाता वोटिंग करेंगे। लेकिन क्या आपको पता है कि हमारे देश में कितने तरह के मतदाता होते हैं?
वैसे तो भारत में कई तरह के मतदाता हैं। जैसे-आम मतदाता, सेवा मतदाता और NRI वोटर्स, लेकिन वोटर्स की एक और कैटेगरी है। आपको जान कर हैरानी होगी कि इन लोगों के नाम में तो वोटर है लेकिन वोट डालने का ही हक नहीं है? इन लोंगों को डी-वोटर यानी की डाउटफुल वोटर या फिर संदिग्ध मतदाता भी कहा जाता है।
आइए अपने आज के आर्टिकल में हम आपको बताते हैं कि डी–वोटर कौन होते हैं? यह किस तरह के वोटर होते हैं और इनके पास मतदान करने का अधिकार आखिर क्यों नहीं है? आसान भाषा में अगर हम समझें तो ये वो वोटर्स होते हैं, जो अब तक अपनी नागरिकता को साबित नहीं कर पाए हैं और इसलिए ये लोग संदिग्ध नागरिकता में आते हैं।
साल 2015 में महिंद्र दास नाम के एक शख्स को डी-वोटर घोषित किया गया था। जिसके बाद साल 2019 में फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल निर्णय सुनाते हुए महिंद्र को फॉरेनर यानी विदेशी घोषित कर दिया था। असम सरकार के मुताबिक, उनके राज्य में ऐसे लोगों की संख्या तकरीबन एक लाख से भी अधिक है। इन लोगों की नागरिकता पर भारत सरकार को संदेह है। असम में जिस तरह से NRC यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस और CAA यानी सिटिजन अमेंडमेंट एक्ट का मुद्दा है, उसी तरह से डी-वोटर भी एक बड़ा मुद्दा है।
साल 1997 में भारतीय चुनाव आयोग ने विदेशी नागरिकों की पहचान करने के लिए एक मुहिम चलाई थी, जिसमें उन लोगों के नाम रजिस्टर किए गए थे, जिनकी नागरिकता पर उन्हें संदेह था। तत्कालीन सरकार ने 24 मार्च 1971 की एक तारीख तय की और कहा कि इस तारीख से पहले जो भी लोग भारत आए, वह वैध नागरिक माने जाएंगे और जो लोग इस तारीख के बाद आए, उन्हें अवैध नागरिक घोषित किया जाएगा। इस तारीख को रखने की वजह बांग्लादेश में आज़ादी के लिए होने वाला युद्ध था।
भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने फॉरेनर ट्रिब्यूनल ऑर्डर को पारित किया था, जोकि 1964 में आया था। इसमें देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जिला मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया था कि वह ये तय कर सकते हैं कि कोई वैध नागरिक है या अवैध, यानी की भारतीय है या विदेशी।
ये वोटर देश में होने वाले चुनावों में मतदान नहीं कर सकते। लेकिन ये मुद्दा सिर्फ लोगों के मतदान न कर पाने तक ही सीमित नहीं है। इसमें ये लोग कल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं उठा सकते। गरीबी और अभावों में जीने वाले ये लोग आर्थिक और सामाजिक तंगी से जूझते रहते हैं। यही वजह है कि ये लोग जहां-जहां पाए जाते हैं, वहां उनकी हालत बहुत बुरी है। उन्हें मूलभूत चीजों जैसे रोटी, कपड़ा और मकान के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। यह मुद्दा सिर्फ सामाजिक और आर्थिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक भी है।