बीते कुछ समय से भारत में मंदिरों की चर्चा काफी तेजी से हो रही है। पहले तिरुपति मंदिर में लड्डू प्रसाद को लेकर हुए विवाद ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा, फिर अय़ोध्या में भी प्रसाद को लेकर जांच कराई गई। इसके बाद आंध्र प्रदेश के उप मुख्यमंत्री पवन कल्याण ने सनातन धर्म की आवाज़ बुलंद करते हुए एक राष्ट्रीय ‘सनातन धर्म संरक्षण बोर्ड’ बनाने की भी मांग की थी। ऐसे में अब मंदिरों और हिंदू मुस्लिम विवादों पर अपनी राय स्पष्ट करते हुए तुलसी पीठ के पीठाधीश्वर रामभद्राचार्य के कई बयान सामने आए हैं।
दरअसल, रामभद्राचार्य हाल ही में बिजेथुआ महोत्सव में श्रीराम कथा करने पहुंचे थे। जहां उन्होंने देश के तमाम मुद्दो पर अपनी राय व्यक्त की है। हिंदू मंदिरों को लेकर उन्होंने कहा कि देश के तमाम हिंदू मंदिरों से सरकार का अधिग्रहण हटाया जाना चाहिए। साथ ही, हिंदी को राष्ट्रभाषा और रामचरितमानस को राष्ट्रग्रंथ के तौर पर घोषित किया जाना चाहिए। इसके अलावा राजनीतिक दलों में हो रही हिंदू-मुस्लिम धर्म पर बयानबाजी को लेकर भी रामभद्राचार्य ने कहा कि ये बिल्कुल गलत है, सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि हिंदुत्व भारतीयता का पर्यायवाची है. जो अत्याचार मुस्लिम दल कर रहा है, न जाने हम क्यों सहन कर पा रहे हैं. अभी दुर्गा पूजा में देखा आपने कितना बड़ा अनर्थ हो गया।
वहीं रामभद्राचार्य ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले पर भी अपना पक्ष रखते हुए बताया कि जिस तरह मेरी गवाही ने राम जन्मभूमि मामले की दिशा बदल दी थी। उसी तरह वहां की भी दिशा बदलेगी। हिंदू जैसा कोई सहिष्णु हो नहीं सकता. हमारी सहिष्णुता की अग्निपरीक्षा हो रही है.
आपको बता दें कि इस दौरान पीठाधीश्वर रामभद्राचार्य ने बांग्लादेश में हुए तख्तापलट और हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर भी आवाज़ उठाई और कहा कि बांग्लादेश में क्या हुआ.. अन्य देशों में आज क्या हो रहा है। हमारे खुदके बंगाल में क्या हो रहा है। और हम फिर भी सबकुछ सहन कर रहे हैं। लेकिन अब नहीं करेंगे।
ये सभी बयान तो आपने सुन लिए.. लेकिन अब आपको बताते हैं कि आखिर कौन हैं रामभद्राचार्य..?
उत्तर प्रदेश के जौनपुर में साल 1950 में जन्में रामभद्राचार्य नेत्रहीन हैं। बावजूद इसके उन्होंने 4 साल की उम्र से ही लेखन कार्य की शुरूआत कर दी थी। और जब वो 8 साल के हुए तब उन्होंने अपना ध्यान भागवत कथा और रामकथा कहानियां सुनाने में लगा लिया। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन रामभद्राचार्य को लगभग 22 भाषाओं का ज्ञान है। वो कई ग्रंथ भी लिख चुके हैं। जिनके लिए भारत सरकार उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित कर चुकी है।