भारत में ना जाने ऐसे कितने हिल स्टेशन हैं। जहां लोग हर साल घूमने के लिए जाते हैं। और इनमें शिमला, मनाली तो काफी लोकप्रिय भी हैं। लेकिन क्या आपको हिमाचल प्रदेश स्थित एक ऐसे गुरूद्वारे के बारे में मालूम है जहां स्थित कुंड का पानी बर्फीली ठंड में भी उबलता रहता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं मणिकरण साहिब गुरूद्वारे की। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित ये गुरूद्वारा 1760 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है।
पौराणिक कथाओं की मानें तो इसी स्थान पर शिव-पार्वती ने मिलकर 11 वर्षों तक तपस्या की थी। कहते हैं कि एक बार माता पार्वती के कानों के आभूषणों से एक मणि निकलकर पानी में गिर गयी थी। जिसे ढ़ूंढ़ने के लिए भगवान शिव ने अपने शिष्यों को भेजा, लेकिन वो नाकामयाब रहे। ऐसे में शिव के क्रोध से पैदा हुई नैनादेवी नामक शक्ति ने बताया कि माता पार्वती के आभूषण की मणि पाताललोक में शेषनाग के पास है। जिसके बाद सारे देवता मिलकर शेषनाग से मणि वापस ले आए। मगर इस बात से गुस्साए शेषनाग ने ऐसी फुंकार भरी कि गर्म पानी की धारा इस जगह पर फूट पड़ी।
वहीं दूसरी ओर त्वरिक गुरू खालसा के अनुसार, मणिकरण में गुरूनानक एक बार अपने 5 चेलों के साथ पहुंचे थे। जहां उन्होंने एक दिन लंगर बनाने के लिए अपने एक चेले मर्दाना को दाल और आटा लाने को कहा। इसी के साथ उन्होंने मर्दाना से एक पत्थर लाने का भी आग्रह किया। लेकिन जैसे ही मर्दाना ने अपने नीचे रखा पत्थर उठाया तो वहां से गर्म पानी की धारा बहने लगी। और उसी दिन से आज तक ये गर्म पानी की धारा यूं ही बह रही है। जिसका इस्तेमाल आज के समय में गुरूद्वारे में लंगर बनाने के लिए किया जाता है। इतना ही नहीं, यहां आने वाले श्रद्धालु इस पानी को पीते भी हैं साथ ही इसमें डुबकी लगाना मोक्ष की प्राप्ति मानते हैं।
आपको बता दें कि इस गुरूद्वारे में एक धर्मशाला भी बनाई गई है जहां ऐसे लोगों को रहने के लिए मुफ्त में कमरे दिए जाते हैं। जिनका आरक्षण लंगर भवन में होता है। वहीं खास बात ये है कि इस गुरूद्वारे में हिंदू और सिख दोनो धर्मों को मानने वाले लोगों का संयोजन देखने को मिलता है। वहीं मणिकरण गुरूद्वारे का नाम भी माता पार्वती के कानों की मणि खोने वाली कथा के आधार पर ही पड़ा।