कर्नाटक के JDS नेता प्रज्वल रेवन्ना इन दिनों सैकड़ों महिलाओं के यौन शोषण मामले में घिरे हुए हैं। उनपर सैकड़ों महिलाओं के साथ यौन शोषण कर उन्हें ब्लैक मेल करने का आरोप लगा है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री हरदनहल्ली देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना पर लगे इल्ज़ामों ने दादा का सिर शर्म से झुका दिया है। हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है। जब “सेक्स स्कैंडल” जैसे किसी मामले का असर राजनीति पर पड़ा हो। इससे पहले भी 1978 में एक ऐसे ही मामले ने बाबू जगजीवनराम का राजनीतिक जीवन ही खत्म कर दिया था। कहते हैं कि अगर वो खुलासा नहीं होता तो जगजीवनराम देश के पहले दलित प्रधानमंत्री बन सकते थे।
दरअसल, ये बात है साल 1977 की, जब देश में कांग्रेस नहीं बल्कि जनता पार्टी सत्ता में थी। आजादी के बाद ये पहली बार था जब देश में कांग्रेस की जगह किसी और पार्टी की सरकार बनी हो। हालांकि जनता दल ने ये जीत गठबंधन के साथ हासिल की थी। जिसके तीन मजबूत स्तंभ मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह और बाबू जगजीवन राम थे। चुनाव में जीत हासिल करने के बाद जगजीवनराम देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। लेकिन सभी के सहमति से उन्होंने रक्षा मंत्री का पद ग्रहण किया। वहीं चौधरी चरण सिंह ने गृहमंत्री का पद संभाला। जबकि मोरारजी देसाई को देश का प्रधानमंत्री चुना गया।
जगजीवन राम के प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा के बारे में मोरारजी देसाई पहले से जानते थे। जिसके चलते सरकार बनने के कुछ ही महीनों के अंदर तीनों के बीच मतभेद शुरू हो गए। इसी बीच चौधरी चरण सिंह की नजदीकियां कांग्रेस से बढ़ने लगीं, वहीं जनता दल टूटने की आशंकाएं बढ़नी लगीं। ऐसा लगने लगा था कि अब जगजीवन राम को देश के प्रधानमंत्री के रूप में चुन लिया जाएगा। राजनीतिक हालात ऐसे बन चुके थे कि जगजीवनराम प्रधानमंत्री कुर्सी के बहुत नजदीक थे। लेकिन इस बीच साल 1978 में सूर्या नामक पत्रिका ने एक बड़े सैक्स स्कैंडल का खुलासा किया। ये सेक्स स्कैंडल किसी और का नहीं बल्कि जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम का था। पत्रिका में सुरेश राम के साथ एक महिला की आपत्तिजनक तस्वीरें छापी गई थी।
दरअसल, सूर्या पत्रिका की संपादन इंदिरा गांधी की छोटी बहू मेनका गांधी थी। कहा जाता है कि मेनका गांधी तक ये तस्वीरें संजय गांधी ने पहुंचाई थी। जबकि संजय गांधी तक इन तस्वीरों को पहुंचाने का काम मोहन मीकेंस के मालिक कपिल मोहन ने किया था। कपिल मोहन के पास सुरेश राम की एक या दो नहीं बल्कि कुल 40-50 तस्वीरें थीं, जिनमें वो एक महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए नजर आए थे। कुछ खबरों की मानें तो जिस महिला के साथ सुरेश राम की तस्वीरें पत्रिका में छापी गई थीं, वो उनकी कथित गर्लफ्रेंड थी। जब देशभर में जगजीवन राम की बेइज्जती हो गई तो सुरेश राम ने उस महिला के साथ शादी कर ली। मगर इस सबके बीच जगजीवन राम प्रधानमंत्री बनने की रेस से बाहर हो गए और देश को भारत का पहला दलित प्रधानमंत्री मिलते मिलते रह गया। वहीं इस स्कैंडल के 6 साल बाद ही सुरेश राम की मौत हो गई।
कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि इस सेक्स स्कैंडल का खुलासा केवल जगजीवन राम के राजनैतिक करियर को खत्म करने के लिए इंदिरा गांधी ने करवाया था। इतना ही नहीं, इस साजिश में विपक्ष के अलावा जनता पार्टी के केसी त्यागी, ओमपाल सिंह और एपी सिंह जैसे नेताओं के नाम भी सामने आए थे। उस दौरान जहां केसी त्यागी जनता दल में महासचिव के पद पर कार्यरत थे। वहीं ओमपाल सिंह किसान सम्मेलन के कार्यलय सचिव का कारभार संभालते थे। दोनों ही चौधरी चरण सिंह के काफी करीबी थे। सुरेश राम ने स्कैंडल मामले में तीनों के खिलाफ केस किया था। जिसमें केसी त्यागी और ओमपाल सिंह को मुख्य आरोपी बनाया गया, जबकि एपी सिंह को गवाह बनाया गया।
कहा जाता है कि केसी त्यागी और ओमपाल सिंह पहले से ही सुरेश राम की इन हरकतों से वाकिफ़ थे। जिसके चलते वो कई बार सुरेश की गाड़ी का पीछा करते भी पाए गए। एक दिन जब सुरेश की कार से गाजियाबाद के मोहननगर में हुए हादसे में एक व्यक्ति की मौत हो गई, तो सुरेश ने घबराकर अपनी कार मोहन मीकेंस के कैंपस में छोड़ दी और खुद घर चले गए। इसी दौरान उनकी कार का पीछा कर रहे केसी त्यागी और ओमपाल सिंह ने ये सब होते हुए देखा और सुरेश के जाने के बाद उसकी कार की तलाशी ली। कार में उन्हें सुरेश की अश्लील तस्वीरों का जखीरा मिला। जिन्हें देखकर दोनों ही हैरान रह गए, मगर मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने कुछ तस्वीरें कपिल मोहन को दे दीं तो कुछ नेशनल हेराल्ड के प्रधान संपादन खुशवंत सिंह को भेजी गईं।
खुशवंत सिंह कांग्रेस परिवार के बेहद करीबी थे, उन्होंने इस घटना का जिक्र अपनी किताब ट्रूथ, ‘लव एंड लिटिल मेलिस’ में करते हुए लिखा कि मेरे पास बाबू जगजीवन राम का एक दूत आया था, जिसने कहा कि अगर वो अश्लील तस्वीरें नेशनल हेराल्ड और सूर्या में नहीं छपते तो बाबूजी इंदिरा गांधी के पाले में आ सकते हैं। उन्होंने आगे लिखा कि जब मैंने ये बात इंदिरा जी को बताई तो उन्होंने साफ कहा कि मेरा उस शख्स पर रत्तीभर भी विश्वास नहीं है। उसने मेरे परिवार को बहुत नुकसान पहुंचाया है।
इसके बाद जुलाई 1979 में जब मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई तो जगजीवन राम फिर से प्रधानमंत्री बनने की रेस में शामिल हो गए। लेकिन एक बार फिर ये मौका उनके हाथ से चला गया, क्योंकि सरकार गिरने के बाद चौधरी चरण सिंह इंदिरा गांधी के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री बन गए। लेकिन सिर्फ 23 दिनों के अंदर ही इंदिरा गांधी ने अपना समर्थन वापिस ले लिया और चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा।
सरकार गिरी तो इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को लोकसभा भंग करने की सलाह दे दी। मगर प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा के पीछे भाग रहे जगजीवन राम ने इस फैसले को चुनौती दी और सदन में अपना बहुमत साबित करने की मांग रखी। लेकिन उन्हें ये मौका नहीं दिया गया और राष्ट्रपति ने लोकसभा भंग करने का ऐलान कर दिया। इसके बाद जनवरी 1980 तक चरण सिंह केयरटेकर प्राइम मिनिस्टर बने रहे।
इस पूरे मामले को जगजीवन राम और उनके समर्थकों ने धोखा करार दिया और ऐसा आरोप लगाया कि उच्च जाति के हिंदू नेताओं को दलितों का शीर्ष गद्दी पर बैठना हजम नहीं हो रहा था। वो एक निचली जाति से आए व्यक्ति को अपना लीडर नहीं मानना चाहते थे। खैर वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन एक बार फिर बाबू जगजीवन राम प्रधानमंत्री बनने से रह गए..