अब तक भारतिका पर हमने आपको कई मंदिरों की कहानियां बताई हैं। भारत में मौजूद लाखों मंदिर अपने अलग-अलग इतिहास, रहस्यों और वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं। जिनमें कई मंदिर इतने प्रसिद्ध हैं कि इनकी चर्चा पूरी दुनिया में होती है तो वहीं कुछ मंदिर अपने आप में ही इतने रहस्य समेटे हुए हैं जिनकी गुत्थी आज तक कोई नहीं सुलझा सका। ऐसा ही एक मंदिर कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले में स्थित श्रृंगेरी नामक जगह पर भी है। जिसे विद्याशंकर मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को इसकी वास्तुकला के साथ ही इसके 12 स्तंभों के कारण जाना जाता है।
आपको बता दें कि विद्याशंकर मंदिर के मठ की स्थापना खुद शंकराचार्य ने की थी। ये मंदिर उनके द्वारा स्थापित किए गए अद्वैत मठों में से एक माना जाता है। जिसके पहले प्रमुख भी श्री आदि शंकराचार्य के शिष्य सुरेश्वराचार्य बने थे। मान्यता है कि इस तीर्थ स्थल का निर्माण विद्यारान्य नामक एक ऋषि ने 1338 ई. में करवाया था। लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जिस दौर में इस मंदिर का निर्माण हुआ उस दौर में ना तो ज्यादा तकनीकें थी और ना ही ज्यादा सुविधाएं थी। बावजूद इसके इस मंदिर का निर्माण काफी सोच समझकर किया गया।
दरअसल, इस मंदिर की शैली और वास्तुकला के अलावा जो बात लोगों को आकर्षित करती है वो है यहां बने 12 स्तंभ। इस मंदिर में कुल 12 स्तंभ बने हैं जो कि 12 राशि चक्रों के प्रतीक हैं। खास बात ये है कि ये सभी 12 स्तंभ अलग-अलग आकार और रूपरेखा के हैं। और तो और एक रहस्य जो आज तक कोई नहीं सुलझा सका वो ये है कि हर सुबह जब सूरज की किरणें निकलती हैं, तो वो केवल उसी स्तंभ पर पड़ती हैं जिस राशि का महीना उस समय चल रहा होता है। और हिंदू वर्ष के अनुसार महीना बदलने के साथ ही सूरज की किरणें भी दूसरे स्तंभ पर चली जाती हैं। इस मंदिर में अंदर जाने और बाहर निकलने के लिए कुल 6 दरवाजे बनाए गए हैं।
सिर्फ इतना ही नहीं, इस मंदिर की एक और खासियत है कि जब भी दिन और रात दोनो बराबर होते हैं। तो सूरज की किरणें सीधा मंदिर में स्थापित विद्याशंकर के लिंग पर पड़ती हैं। जबकि अन्य दिन सूरज की एक भी किरण गर्भगृह में प्रवेश तक नहीं करती हैं। जानकारी के लिए आपको बता दें कि इस मंदिर के गर्भगृह में विद्याशंकर के लिंग की पूजा की जाती है। जबकि मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर की मूर्तियां भी स्थापित हैं।