राजस्थान के सबसे बहादूर और साहसी शूरवीरों में से एक महाराणा सांगा का बलिदान आज भी हर किसी की जुबां पर रहता है। राणा सांगा ने मेवाड़ में 1509 से 1528 तक शासन किया और देश में अपना कब्ज़ा जमाने वाले मुगलों व विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ सभी राजपूतों को इकठ्ठा किया। वैसे तो महाराणा सांगा ने कई लड़ाईयां लड़ी लेकिन खानवा युद्ध में उनकी बहादुरी की बराबरी आज तक कोई नहीं कर सका। तो चलिए आज भारतिका पर आपको बताते हैं खानवा युद्ध से जुड़ी उस घटना के बारे में, जब शरीर पर 80 घाव लिए जंग के मैदान में लड़ता रहा था एक राजपूत योद्धा।
कहा जाता है कि 1527 में जब राणा सांगा और मुगल बादशाह बाबर के बीच भयानक युद्ध हुआ। तब राणा के साथ लड़ रहे लोदी के सेनापति ने उन्हें धोखा देकर अपनी सेना को बाबर के साथ मिला लिया। जिससे सांगा की सेना कमजोर हो गई और बाबर की सेना को और मजबूती मिली। बाबरनामा की मानें तो राणा सांगा की सेना में करीब 2 लाख सैनिक शामिल थे। हालांकि सैनिकों की संख्या को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों का हमेशा अलग-अलग मत रहा है। मगर इस बात में कोई दो राय नहीं थी कि महाराणा सांगा की सेना बाबर की सेना से कही ज्यादा शक्तिशाली थी।
ऐसे में बाबर ने तुलुगमा रणनीति का रास्ता अपनाया। इस नीति को उज़्बेकों ने ईजाद किया था। जिसके तहत सेना को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। दाएं, बाएं और बीच और इन तीन हिस्सों को भी आगे और पीछे के दो हिस्सों में बांटा जाता है। बीच वाली लाइन के आगे वाले हिस्से में बैलगाड़ियां खड़ी की जाती हैं। जबकि बाएं और दाएं तरफ माहिर तीरंदाज तैनात किए जाते हैं। इन तीनों पंक्तियों के बीच केवल इतनी जगह छोड़ी जाती है कि पीछे खड़े घुड़सवार सैनिक एक साथ निकल सकें। वहीं पीछे तोपों से गोलियों की बारिश की जाती थी। युद्ध की इस रणनीति को उस समय की सबसे बेहतरीन रणनीतियों में से एक माना जाता था।
आपको बता दें कि इसी रणनीति के चलते समरकंद में बाबर को तीन बार हारना पड़ा था। तो बस उसने यही युद्ध नीति अपने दुश्मन पर भी अपनाई। हालांकि राजपूत सेना ने मुगलों की इस रणनीति को सफल नहीं होने दिया। 3 घंटे युद्ध चलने के बाद दोनों तरफ पलड़ा एकदम बराबर हो चला था। मगर लोदी के सेनापति सिलहड़ी तोमर से मिले धोखे ने महाराणा सांगा की सेना को तोड़ दिया। तोमर अपने 30 हजार सैनिक लेकर बाबर की सेना से जा मिला। इस धोखाधड़ी के बीच जब तक राणा अपनी रणनीति बदलते तब तक एक गोली सीधे आकर महाराणा सांगा को जा लगी। कहा जाता है कि इस बीच राणा सांगा की एक आंख में तीर भी लगा बावजूद इसके वो लड़ते रहे। इस युद्ध में उनपर कुल 80 वार किए गए थे, और उनके एक हाथ भी कट गया। जब वो बेहोश हुए तो उनकी सेना द्वारा उन्हें युद्ध से सुरक्षित बाहर ले जाया गया। लेकिन इस जंग में बाबर की जीत और महाराणा सांगा की हार हो चुकी थी।
कहा तो ये भी जाता है कि इस जंग में जीत हासिल करने के बाद बाबर ने मरे हुए सैनिकों की खोपड़ियों से एक मीनार तक बनवाई थी। वहीं बात सांगा की करें, तो वो एक बार फिर ठीक होकर बाबर के साथ जंग लड़ने की तैयारी कर रहे थे। मगर उनके भरोसेमंद साथी सरदार इस युद्ध के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने युद्ध से बचने के लिए महाराणा सांगा को ज़हर दे दिया। जिसके चलते 30 जनवरी 1528 को राणा का निधन हो गया।