वैसे तो भारत में कई मंदिर हैं। कुछ इतने लोकप्रिय हैं कि लोग दुनियाभर से इनके दर्शन करने भारत पहुंचते हैं। जबकि कुछ मंदिरों का इतिहास, उनकी कहानियां लोगों को हैरान कर देती हैं। ऐसा ही एक मंदिर गुजरात के वलसाड में स्थित है। जिसे मत्स्य माताजी मंदिर के नाम से जाना जाता है। नाम सुनते ही आपके दिमाग में एक ख्याल जरूर आया होगा कि भला ये कैसा नाम है ? क्योंकि मंदिर के नाम में मत्स्य शब्द कुछ पचा नहीं। लेकिन इस मंदिर की खासियत ही ये शब्द है। जो इस मंदिर को बाकी मंदिरों से बिल्कुल अलग बनाता है।
दरअसल, मत्स्य माताजी मंदिर में किसी देवी-देवता की नहीं बल्कि व्हेल मछली की हड्डियों की पूजा की जाती है। मंदिर करीब 300 साल पुराना है। जिसका निर्माण भी किसी राजा-महाराजा ने नहीं बल्कि मछुआरों ने करवाया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, करीब 300 वर्ष पहले वलसाड के मगोद डूंगरी गाँव के रहने वाले प्रभु टंडेल नामक एक शख्स को सपना आया था जिसमें उसने देखा कि समुद्र किनारे एक व्हेल मछली मृत अवस्था में पड़ी हुई है। टंडेल ने सपने में देखा कि देवी मां व्हेल मछली का रूप धारण करके तैरती हुई समुद्र के किनारे पर आती हैं लेकिन किनारे पर आते ही उनकी मौत हो जाती है। ये सपना देखने के बाद सुबह जैसे ही प्रभु टंडेल उठे तो उन्होंने तुरंत समुद्र किनारे जाकर ठीक उसी स्थान पर देखा तो हकीकत में वहां एक व्हेल मछली मरी हुई थी। ये मछली विशाल आकार की थी। जिसे देखकर प्रभु ही नहीं बल्कि ग्रामीण भी चौंक उठे।
प्रभु ने सभी ग्रामीणों को अपने सपने के बारे में बताया और मरी हुई मछली को समुद्र किनारे ही मिट्टी में दफन कर दिया। इसके बाद व्हेल को दैवीय अवतार मानकर उन्होंने एक मंदिर का निर्माण भी करवाया। निर्माण होने के बाद टंडेल ने दफन की हुई मछली की हड्डियां निकाली और उन्हें मंदिर में स्थापित कर दिया। हालांकि ये सारा काम प्रभु टंडेल के विश्वास पर किया गया। जिसमें कुछ लोगों ने जहां उनकी बात पर विश्वास करके मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू कर दी। तो वहीं कई लोग टंडेल के इस विश्वास के विरोध में रहे।
कहा जाता है कि जिन लोगों ने टंडेल के विश्वास और मंदिर की कहानी का मजाक उड़ाया, उन्हें गांव में फैली एक बीमारी का शिकार होना पड़ा। लेकिन बाद में टंडेल के कहने पर लोगों ने मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू की तो धीरे-धीरे गांव में फैली बीमारी दूर हो गई। बस तभी से लेकर आज तक ये मंदिर यूं ही लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। मान्यता ये भी है कि अगर कोई मछुआरा मंदिर में माथा टेके बिना समुद्र में जाता हैं तो किसी ना किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है। खास बात ये है कि इस मंदिर का संचालन आज भी टंडेल परिवार ही करता आ रहा है।