22 अप्रैल 2006 को मुंबई के वर्ली स्थित पूर्णा आवास से एक के बाद एक तीन गोलियां चलने की आवाज़ आई और कुछ देर बाद मालूम चला कि प्रमोद महाजन के भाई प्रवीण महाजन ने उनकी हत्या करने का प्रयास किया। ये खबर हवा की तरफ चंद ही घंटों में पूरे देश में फैल गई। और सबके मन में एक ही सवाल था। कि आखिर प्रवीण कुमार ने अपने भाई की हत्या क्यों की ? ऐसा क्या हुआ दोनों के बीच की बात खून खराबे तक पहुंच गई।
तारीख थी 22 अप्रैल 2006, दिन था शनिवार और समय सुबह के 7 बजकर 30 मिनट हुआ था। प्रमोद महाजन के घर की घंटी बजी, दरवाज़ा खोलने उनकी पत्नी रेखा महाजन पहुंची तो देखा कि उनके देवर प्रवीण महाजन जीन्स और टी-शर्ट पहने दरवाज़े पर खड़े हैं। प्रवीण आमतौर पर प्रमोद के घर नहीं आते थे, जिसके चलते रेखा उन्हें देखकर चौंक गई। हालांकि उन्होंने प्रवीण को अंदर बुलाया और खुद चाय बनाने किचन में चली गईं। प्रमोद उस समय ड्राइंग रूम में बैठे अखबार पढ़ रहे थे। उन्होंने जैसे ही प्रवीण को अंदर आते देखा तो हैरान होकर पूछा कि तुम यहां क्या कर रहे हो ?
प्रवीण ने प्रमोद की बात तो सुनी लेकिन बिना जवाब दिए उनके सामने रखे सिंगल सीट सोफा पर जाकर बैठ गए। और फिर शिकायतों की एक लंबी लिस्ट अपने बड़े भाई को सुनाने लगे। ये शिकायतें सालों पुरानी थीं, प्रवीण को हमेशा लगता था कि प्रमोद उनके व्यापार में उनकी कोई मदद नहीं कर रहे हैं। दोनों के बीच बात कुछ 10 मिनट तक चली और अचानक 7 बजकर 40 मिनट पर प्रवीण महाजन ने अपनी जेब से 32 बोर की पिस्तल निकाली और प्वाइंट ब्लैंक रेंज में प्रमोद महाजन के शरीर में दाग दी.. एक के बाद एक तीन गोलियां उनके सीने में जा लगीं, चौथी गोली चलाने के प्रयास में प्रवीण असफल रहे, क्योंकि पिस्तल जाम हो गई थी।
बंदूक चलने की आवाज़ सुनते ही प्रमोद की पत्नी रेखा भागती हुई किचन से ड्राइंग रूम में पहुंची तो उन्होंने देखा कि प्रमोद सोफे पर गंभीर हालत में पड़े हैं, हालांकि वो अभी भी होश में थे जबकि प्रवीण जैसे घर में आया था वैसे ही फ्लैट से बाहर जाने लगे। रेखा ने कोर्ट में गवाही देते हुए कहा था कि मैंने प्रवीण को धक्का देने की कोशिश की, लेकिन प्रवीण ने मुझे ही धक्का दे दिया और कहा कि आपने मेरी बात नहीं सुनी, अब भुगतो..
प्रमोद की हालत देख रेखा को कुछ समझ नहीं आया और वो दौड़ती हुई बिल्डिंग के 12वें माले पर अपने बहनोई गोपीनाथ को बुलाने पहुंच गईं। गोपीनाथ ने भी बिना देरी किए प्रमोद को अस्पताल ले जाने की तैयारी की। इतनी देर में उन्होंने उसी बिल्डिंग में रहने वाले डॉक्टर विजय बांग को भी फोन कर बुला लिया। विजय बांग उन दिनों JJ हॉस्पिटल में चीफ ऑफ़ कार्डियोलॉजिस्ट थे। उन्होंने तुरंत प्रमोद के फ्लैट पर पहुंचकर उनकी नब्ज जांची और पाया कि प्रमोद का ब्ल़ड प्रेशर काफी नीचे जा चुका था। और तब उन्हें यह अहसास हुआ कि प्रमोद को इंटरनल ब्लीडिंग काफी ज्यादा हो चुकी है। बांग ने बिना देरी किए हिंदुजा हॉस्पीटल में कॉल कर उन्हें तैयारी करके रखने को कहा। फिर गाड़ी में बैठाकर प्रमोद को हिंदुजा हॉस्पीटल ले जाया गया।
हाई प्रोफाइल केस होने की वजह से अस्पताल पहुंचते ही उनका इलाज शुरू किया गया। एक ओर जहां प्रमोद हॉस्पीटल में जिंदगी और मौत के बीच की जंग लड़ रहे थे। वहीं दूसरी ओर प्रवीण के चेहरे पर बड़े भाई की हत्या का कोई पछतावा नहीं था। प्रमोद को गोली मारने के बाद वो पैदल ही सड़क पर निकल गए। जिस हरे रंग की मारुति स्विफ्ट में वो प्रमोद महाजन के घर पहुंचे थे, प्रवीण ने उसे भी वहीं छोड़ दिया। और टैक्सी लेकर सीधा वर्ली थाना पहुंच गए। सुबह के साढ़े 8 बजे थे थाने में रात की ड्यूटी पूरी कर कई पुलिसकर्मी वापस घर लौट रहे थे कि प्रवीण हाथ में पिस्तौल लिए थाने के अंदर पहुंचे, उन्होंने सब-इंस्पेकटर जयकुमार शंकर से मराठी में कहा कि मैंने प्रमोद महाजन को गोली मार दी है, यहां सरेंडर करने आया हूं।
पुलिस ने पहले तो प्रवीण की बात पर यकीन नहीं किया, क्योंकि उन दिनों प्रवीण महाजन को ज्यादा लोग नहीं जानते थे। ऐसे में जब प्रवीण वर्ली थाना पहुंचे तो पुलिसवाले भी उन्हें पहचान नहीं पाए। हालांकि प्रवीण के सरेंडर के बाद कुछ ही देर में वर्ली थाना छावनी में तब्दील हो गया। थाने के बाहर बड़ी संख्या में पत्रकारों की भीड़ जमा हो गई। वहीं प्रवीण के खिलाफ पुलिस ने सेशन कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर ली।
हालांकि तब तक अस्पताल में भर्ती प्रमोद महाजन की मौत नहीं हुई थी। लेकिन उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी। उनका लीवर पूरी तरह से डैमेज हो चुका था। जिसके चलते लंदन से लिवर ट्रांसप्लांट स्पेशलिस्ट को भी बुलाया गया। बावजूद इसके प्रमोद महाजन को नहीं बचाया जा सका और 3 मई 2006 को उनकी मौत हो गई। हैरानी की बात ये रही कि जब ये खबर जेल में बंद प्रवीण महाजन को दी गई, तो उनके चेहरे पर कोई शिकन, कोई भाव नहीं था। उसने बस इतना पूछा कि क्या सही में..
इसके बाद ये केस अदालत में चला तो कई पहलू सामने आए। जहां प्रमोद की पत्नी रेखा ने बताया कि प्रवीण प्रमोद से पैसे मांगने आया था, लेकिन जब प्रमोद ने मना किया तो उसने गुस्से में प्रमोद पर गोली चला दी। हालांकि प्रवीण ने खुद भी शुरूआती जांच में यही कहा कि उसने आवेश में आकर प्रमोद की हत्या की। उसके अनुसार, वो बार-बार प्रमोद से मिलने के लिए वक्त मांग रहा था लेकिन हर बार प्रमोद उसकी बात टाल दिया करता। 22 तारीख की मुलाकात से कुछ दिन पहले ही 15 अप्रैल की रात को प्रवीण और प्रमोद के बीच फोन पर काफी बहस हुई थी। जिसके बाद प्रवीण ने प्रमोद को एक मैसेज भेजा, जिसमें लिखा था कि “अब न होगी याचना, न प्रार्थना, अब रण होगा, जीवन या मरण होगा” इसके बाद जब वो प्रमोद से मिलने उनके घर पहुंचे तो प्रमोद ने उन्हें अपॉइंटमेंट लेने की बात कही, जिससे प्रवीण को गुस्सा आया और उन्होंने गोली चला दी।
हालांकि इसके बाद प्रवीण समय समय पर अपने बयान बदलते रहे। उन्होंने प्रमोद पर भाजपा के लिए जुटाए गए फंड में प्रमोद द्वारा हेराफेरी करने की बात कही। इतना ही नहीं, उन्होंने प्रमोद पर दूसरी महिलाओं के साथ अवैध संबंध होने का भी आरोप लगाया। लेकिन प्रमोद के परिवार ने इन सभी बातों को नकार दिया। जिसके बाद साल 2007 में प्रवीण को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। जेल जाने के बाद जब प्रवीण 14 दिन की फर्लो पर बाहर आए तो उन्होंने डीएनए को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि “मैंने प्रमोद की हत्या नहीं की, ऐसा हुआ.. क्या आप इस पर भरोसा कर सकते हैं। मैं तो ऐसा नहीं सोचता” उन्होंने आगे कहा कि कुछ चीजें मेरी भी समझ से परे हैं। ये सब सिर्फ 15 मिनट में हुआ, मुझे 22 अप्रैल ही नहीं, मुझे सब कुछ याद है।
नासिक की जेल में रहते हुए प्रवीण महाजन ने एक किताब लिखी, जिसे उन्होंने ‘माझा एलबम’ टाइटल दिया। इस किताब में उन्होंने दो खास घटनाओं का जिक्र किया, एक बिक्रम मोइत्रा की मौत और दूसरा शिवानी भटनागर की हत्या.. इन दोनों की मामलों के तार प्रमोद महाजन से जुड़े हुए थे। प्रवीण ने अपनी किताब में लिखा कि बिक्रम की मौत फूड पोइज़निंग के चलते नहीं हुई थी बल्कि उनकी हत्या की गई थी। क्योंकि बिक्रम प्रमोद के काफी नजदीक थे और पार्टी फंड घोटाले का राज जानते थे। इसलिए उन्होंने मार दिया गया।
वहीं जनवरी 1999 में हुई पत्रकार शिवानी भटनागर की हत्या में दोषी ठहराए गए आईपीएस रविकांत शर्मा की पत्नी ने प्रमोद महाजन पर आरोप लगाए थे कि प्रमोद के साथ उनके अवैध संबंधों से उन्हें एक बेटा भी हुआ था। लेकिन जब इस मामले ने तूल पकड़ा, तो प्रमोद महाजन डीएनए टेस्ट के लिए भी तैयार हो गए थे। हालांकि बाद में उनपर लगे सभी इल्ज़ाम बेबुनियाद ठहरा दिए गए। उनके भाई प्रकाश महाजन ने कहा था कि ये सब महाजन परिवार को बदनाम करने की साजिश के तहत किया जा रहा है।
तकरीबन 3 सालों तक जेल में रहने के बाद जब नवंबर 2009 में प्रवीण महाजन की पत्नी की तबीयत खराब हुई तो वो पैरोल पर एक विशेष अवधि के लिए बाहर आए थे। इस अवधि के खत्म होने से कुछ दिन पहले ही 11 दिसंबर को उन्होंने हाई ब्लडप्रेशर और सिर दर्द की शिकायत की, जिसके चलते उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया। जांच में पता चला कि प्रवीण महाजन ब्रेन हैमरेज का शिकार हैं। बाद में वो कोमा में चले गए और करीब 3 महीनें बाद 3 मार्च 2010 को उनकी मौत हो गई। और प्रवीण महाजन की मौत के साथ ही ये राज भी चला गया कि आखिर उन्होंने प्रमोद महाजन की हत्या क्यों की थी।