भारत में महादेव के लाखों-करोड़ों भक्त हैं। ऐसे में महाशिवरात्री के त्योहार पर देश के हर शिव मंदिर में भीड़ होना लाज़मी हैं। लेकिन महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर उत्तराखंड़ के रूद्रप्रयाग स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में भक्तों का हुजूम लगता है। दरअसल, हम सभी जानते हैं कि महाशिवरात्री के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। जिसके चलते हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्री का त्योहार मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती की शादी आखिर किस मंदिर में हुई थी और ये मंदिर आज कहां है।
दरअसल, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। उन्होंने जहां तप किया उस स्थान को आज गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है। वहीं माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे उत्तराखंड़ के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में विवाह किया। इस मंदिर के प्रांगण में कई ऐसी अद्भुत चीजें हैं, जो इस मंदिर को शिव-पार्वती के विवाह का प्रतीक बनाती हैं।
यहां तीन कुंड हैं जिन्हें विष्णुकुंड, ब्रह्मकुंड और रूद्रकुंड के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव-पार्वती विवाह में भाई बनकर भगवान विष्णु ने सभी रस्मों को पूरा किया था और विवाह से पहले जहां उन्होंने स्नान किया था। उस स्थान को आज विष्णु कुंड कहते हैं। वहीं इस विवाह में ब्रह्माजी पुरोहित बने थे। जिसके चलते शादी से पहले उन्होंने जिस कुंड में स्नान किया उसे ब्रह्मकुंड कहा गया। जबकि वो सभी देवी-देवता, जिन्होंने शिव-पार्वती विवाह में हिस्सा लिया था उन सभी ने विवाह से पहले रूद्रकुंड में स्नान किया था। जिसके चलते आज ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से भक्तों को सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।
इतना ही नहीं, इस मंदिर के प्रांगण में एक अंखड धुनी है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी अग्नि के चारों ओर भगवान शिव और मां पार्वती ने सात फेरे लिए थे। और ये अग्नि तीन युगों से जल रही है। कई लोग इस अग्नि कुंड की राख को घर तक ले आते हैं। इसके पीछे मान्यता है राख को हमेशा साथ रखने से वैवाहिक जीवन खुशहाल बना रहता है।