करीब 4 दशकों तक पत्रकारिता करने के बाद राजनीति में अपना सिक्का जमाने वाले राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश नारायण सिंह जी ने भारतिका के संस्थापक श्री अनुरंजन झा को दिए एक साक्षात्कार में राम मंदिर एवं भारतीय राजनीति से जुड़े कई मुद्दों पर बात की। राम मंदिर के मुद्दे को उन्होंने आध्यात्मिक करार देते हुए कहा कि अगर पहले की सरकारों ने चाहा होता, तो राम मंदिर कभी राजनीतिक मुद्दा बनता ही नहीं।
इस साक्षात्कार की शुरूआत करते हुए भारतिका के संस्थापक, लेखक एवं पत्रकार श्री अनुरंजन झा ने सबसे पहले श्री हरिवंश जी का स्वागत किया। उन्होंने श्री हरिवंश नारायण जी से पूछा, “एक लंबा सफर पत्रकारिता में बिताने के बाद राजनीति में आना, क्या बदलाव अपने आप में महसूस करते हैं?”
हरिवंश जी ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा, “पत्रकारिता में उनका आना राजनीति की वजह से ही हुआ। मैं जयप्रकाश जी के गांव का रहने वाला हूं। ये संयोग की बात है। लेकिन उनके जीवन का, उनकी विचारधारा का और उनके सात्विक जीवन का लोगों पर काफी प्रभाव रहा, क्योंकि तब जयप्रकाश 1942 के हीरो थे या जयप्रकाश के अंदर लोगों ने एक नए भारत का सपना देखा था।“
1. आपकी किताब में एक टाइटल है, “विकल्पहीन गांधी” और आज के दौर में एक सवाल बड़ा उठता है कि गांधी की प्रासंगिकता कम हो गई है। उनका विरोध करने वालों की तादाद बीते कुछ वर्षों में काफी बढ़ी है। आप इसे किस तरह देखते हैं ? – अनुरंजन झा
इस पर श्री हरिवंश जी कहते हैं कि गांधी विकल्पहीन थे, हैं, और रहेंगे। ये मेरी निजी धारणा हैं। गांधी जी की कुटिया में एक कोटेशन लगा है जिसका आशय है, “एक दिन दुनिया को गहरा पश्चाताप होगा कि भोग के जिस रास्ते में हम चल पड़े हैं ये हमें कहां पहुंचा दिया है” आजादी के दौरान पंडित जवाहर लाल नेहरू जी से गांधी जी का जो मतभेद था वो इसी बात को लेकर था। पंडित जी सोचते थे, कि शायद पश्चिम के रास्ते देश का विकास होगा। वहीं महात्मा गांधी ने हमेशा कहा कि देश को हमारे गांवों ने मजबूत कराया है। हमारे देश की जो पुरानी सभ्यात-संस्कृति है अगर हम उन्हें बेहतर करते चले तो ही देश मजबूत होगा।
2. आपने सनातन की बात की और 22 जनवरी को श्री रामलला के विग्रह में प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है। इस बीच बहुत सारे सत्ताधारी विरोधी दल हैं जो आरोप लगा रहे हैं कि विपक्ष इसपर राजनीति कर रहा है और राजनीतिक फायदे के लिए इस पूरे आयोजन को इतने विस्तार पर कर रहा है आपका इस बारे में क्या कहना है – अनुरंजन झा
हरिवंश जी ने कहा, “चंद्रशेखर जी जब प्रधानमंत्री थे तब मैं कार्यालय में उनके साथ था और चंद्रशेखर जी इस मामले को लगभग हल तक ले जा चुके थे। इस बारे में शरद पवार जी ने अपनी आत्मकथा में भी लिखा है, यशवंत सिन्हा ने भी लिखा है कि किस तरह से लगभग वो हल कर चुके थे। लेकिन उस वक्त की जो पार्टी उन्हें समर्थन दे रही थी, उनके नेता को जब ये सूचना मिली तो उन्होंने सरकार गिरा दी। इसका मतलब वो चाहते नहीं थे इस समस्या का निदान निकले। इस बात पर आगे प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, डॉ लोहिया ने राम, कृष्ण, शिव तीनों को भारत के जीवन का हिस्सा माना था। भारत में ये तीन प्रतीक ऐसे हैं जिनपर बहुसंख्यक का विश्वास था। इनका अगर हल हमने पहले ही निकाल लिया होता, तो ये राजनीति का विषय बनते ही नहीं। ये आस्था और आध्यात्म का ही विषय रहते। आज राजनीति में जो लोग बात कर रहें हैं, विरोध कर रहें हैं। इन्होंने ही शुरू से राम मंदिर नहीं बनने दिया। अगर इन सबने मिलकर पहले ही रास्ता निकाल दिया होता तो ये सवाल आज होता ही नहीं।
3. साक्षात्कार में आगे एआई पर सवाल करते हुए भारतिका के संस्थापक अनुरंजन झा ने हरिवंश जी से पूछा कि आज के वक्त में एआई को लेकर चर्चा हो रही है वहीं राष्ट्रवाद की विचारधारा भी प्रगाढ़ता से लोगों के मन में बैठ रही है। ऐसे में क्या एआई(आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) राष्ट्रवाद की विचारधारा पर हावी हो रहा है ?
अनुरंजन झा के सवाल का जवाब देते हुए हरिवंश जी ने कहा, “दुनिया 80-90 के दशक से ही ग्लोबल बनना शुरू गई थी। जब मैं मुंबई नौकरी करता था, तो गांव से निकलकर पहले नदी पार करता था। फिर एक दिन बाद बनारस आता था और वीकली ट्रेन पकड़कर करीब 2-3 दिन में मुंबई पहुंचता था। वहीं आज एडवांस टिकट कराकर हम एक ही दिन में अपने गांव से मुंबई पहुंच सकते हैं। यानी कि दूरियां जैसे कम हुईं, वैसे दुनिया एक होती गई। लेकिन एआई इंसान को आगे कहां ले जाएगा ये कह पाना मुश्किल है” 2023 की शुरूआत में दुनिया एआई की खबर सुनकर चौंक उठी। वहीं जिस व्यक्ति ने इसका आविष्कार किया (सैम ऑल्टमैन) उन्होंने बताया कि एआई ऐसी तकनीक है जो लोगों को वो समृद्धि देगी, जिसकी दुनिया में कोई कामना नहीं कर सकता। वहीं ये दुनिया में इस तरह झूठी अफवाह फैलाने की ताकत रखती है, जिसे कोई झुठला नहीं सकता। इसमें अगर राष्ट्रवादी विचारधारा मदद कर सकती है कि इंसान कैसे विवेकवान बने। तो इसके सार्थक प्रयोग की भूमिका सराही जानी चाहिए।