22 जनवरी 2024 को अयोध्या में होने वाली रामलला विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा कई मायनों में ऐतिहासिक होने वाली है। 60 घंटों के मंत्रोच्चार के बाद रामलला विराजेंगे। काशी के वैदिक विद्वानों का मानना है कि ऐसा भव्य अनुष्ठान डेढ़ हजार साल बाद देखने को मिल रहा है। कन्नौज के महान शासक हर्षवर्धन के काल में ही ऐसी भव्य पूजा का जिक्र मिलता है। राजा हर्षवर्धन के बांसखेड़ा अभिलेख में दान-पुण्य के बाद भव्य यज्ञ अनुष्ठान की बात लिखी गई है लेकिन उसके बाद के इतिहास में ऐसे भव्य आध्यात्मिक आयोजन का जिक्र नहीं मिलता है। इतिहास पर गौर करें तो साफ नजर आता है कि 11वीं शताब्दी से देश में इस्लाम का प्रभाव बढ़ना शुरु हुआ, तब से कोई भी बड़ा धार्मिक अनुष्ठान भारत में नहीं हुआ। जबकि हर्षवर्धन के बाद 7वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी तक छोटे-बड़े अनुष्ठान ही हुए हैं।
हर्षवर्धन के बाद चंदेलों और गहड़वाल वंश के राजाओं ने मंदिरों की स्थापना खूब कराई, लेकिन अब राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा में जैसा अनुष्ठान हो रहा है, वैसे किसी बड़े अनुष्ठान का कोई प्रमाण नहीं है। आज से 5 हजार साल पहले सिंधु घाटी के अंतर्गत कालीबंगा (राजस्थान) और लोथल (गुजरात) से यज्ञ वेदिकाओं के सबसे प्राचीन पुरातात्विक प्रमाण मिले हैं।