11 मार्च 2024.. भारत सरकार ने देश में सीएए यानी कि नागरिकता संशोधन कानून लागू करने का नोटिफिकेशन जारी किया। इसके बाद जहां एक ओर भारत में कई समुदायों के बीच बहस छिड़ी, तो वहीं पश्चिम बंगाल का एक समुदाय ऐसा भी है जो सरकार के इस फैसले से काफी खुश नज़र आया। इतना ही नहीं, पश्चिम बंगाल का मतुआ समुदाय इस दिन को अपनी आजादी का दिन भी बता रहा है। लेकिन ऐसा क्यों.. इसके बारे में आपको बताएंगे लेकिन उससे पहले जानते हैं कि आखिर क्या है मतुआ समुदाय और कैसे हुई इसकी शुरूआत।
ये बात है 1860 की, जब अविभाजित बंगाल में मतुआ समुदाय की जड़े फैलना शुरू हुई थीं। ये संप्रदाय हिंदू धर्म को मानता है, लेकिन इसमें जातियों के भेद को खत्म करना चाहता है। मतुआ समुदाय की मूलभावना हमेशा से ही चतुर्वर्ण यानी कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की व्यवस्था को खत्म करने की रही है। कहा जाता है कि मतुआ संप्रदाय की शुरूआत समाज सुधारक हरिचंद ठाकुर ने की थी।
हरिचंद ठाकुर का जन्म 11 मार्च 1812 को बांग्लादेश के फरीदपुर जिले में एक गरीब नामशूद्र परिवार में हुआ था। जब वो बड़े हुए तो उन्हें एक जमींदार ने गांव से निकालकर बाहर कर दिया। जिसके बाद वो ओरकांडी पहुंचे। यहां उन्होंने हरिनाम कीर्तन को अपने जीवन का आधार बनाया और इसका प्रचार करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे कई समुदायों से जुड़े लोग उनके अनुयायी बनने लगे। लोग मानने लगे थे कि अगर वो भी हरि का नाम जपेंगे तो उन्हें जमींदार वर्ग के अत्याचारों से छुटकारा मिलेगा। ऐसे में उच्च जाति के हिंदू और पारंपरिक वैष्णव समुदाय के लोग हरिचंद के अनुयायियों से घृणा करने लगे, साथ ही उन्हें मोटो कहकर चिढ़ाने लगे। धीरे-धीरे ये मोटो शब्द ही मतुआ में बदला और हरिचंद की बताई राह पर चलने वालों को मतुआ समुदाय के नाम से जाना जाने लगा। आपको बता दें कि हरिचंद ठाकुर ने मतुआ समुदाय के लोगों पर इस कद्र अपनी छाप छोड़ी कि लोग उन्हें भगवान समान दर्जा देने लगे। लोग उन्हें श्री श्री हरिचंद ठाकुर कहकर संबोधित करने लगें। 1878 में हरिचंद ठाकुर का निधन हो गया। लेकिन मतुआ समुदाय की बागडोर उनके बेटे गुरूचंद ने संभाले रखी। गुरूचंद ने मतुआ समुदाय की एक सामाजिक रूपरेखा भी तैयार की और कहा कि मतुआ समुदाय केवल मानवतावाद को मानता है। ये बिना किसी जाति, धर्म और लिंग भेद के सभी को स्वीकार करता है।
इसके बाद भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान और बांग्लादेश की आजादी के बाद मतुआ समुदाय से जुड़े कई लोग भारत आ गए। बांग्लादेश की सीमा पर इन शरणार्थियों के लिए ठाकुरगंज नाम की एक बस्ती बसाई गई। जहां खासतौर पर नामशूद्र शरणार्थियों के रहने का प्रबंध हरिचंद ठाकुर के पड़पोते प्रमथ रंजन ठाकुर ने किया। पीढ़ी दर पीढ़ी ठाकुर परिवार मतुआ समुदाय के लोगों के लिए आराध्य बना रहा।
इसके बाद 1962 में प्रमथ रंजन ठाकुर समुदाय प्रतिनिधि के तौर पर सामने आए। उन्होंने पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की हांसखली सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद से लगातार पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय की ताकत बढ़ने लगी। धीरे-धीरे मतुआ समुदाय की संख्या के साथ ही बंगाल की राजनीति में भी इस संप्रदाय की भूमिका अहम हो गई। बंगाल की राजनीति से जुड़े लोग कहते हैं कि बंगाल में लेफ्ट पार्टी की ताकत बढ़ाने में भी मतुआ समुदाय का बड़ा हाथ रहा। क्योंकि 1977 में प्रमथ रंजन ठाकुर ने लेफ्ट पार्टी को अपना समर्थन दिया था। जिसके चलते मतुआ समुदाय से जुड़े लाखों लोगों ने इसके लिए अपने वोट दिए। परिणामस्वरूप 1977 में लेफ्ट की सरकार बनी। जिसने राज्य में साल 2011 तक शासन किया।
मगर इस बीच प्रमथ रंजन ठाकुर की पत्नी बीनापाणि देवी, जिन्हें मतुआ माता के नाम से भी जाना जाता है। उनकी नजदीकियां पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बढ़ने लगीं। तो उन्होंने 15 मार्च 2010 को मतुआ समुदाय की संरक्षक के तौर पर ममता बनर्जी का नाम घोषित कर दिया। इसी के साथ मतुआ समुदाय का समर्थन भी लेफ्ट पार्टी से हटकर तृणमूल कांग्रेस की ओर हो गया। नतीजतन ममता बनर्जी 2011 में राज्य की मुख्यमंत्री बनीं।
इसके बाद 5 मार्च 2019 को मतुआ माता के निधन के बाद उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर ने टीएमसी छोड़कर बीजेपी का हाथ पकड़ लिया और यहां से ठाकुर परिवार की राजनीति में बड़ा बदलाव सामने आया।
अब बात आती है कि आखिर मतुआ समुदाय की भूमिका पश्चिम बंगाल की राजनीति में इतनी अहम क्यों हैं। दरअसल, पश्चिम बंगाल में कुल 42 लोकसभा सीटें हैं। जिनमें से 11 लोकसभा सीटों पर बड़ी संख्या में मतुआ समुदाय के वोटर्स की भागीदारी हैं। ऐसे में इस समुदाय का हर एक मतदान सरकार के लिए अहमियत रखता है। वहीं सीएए लागू होने की वजह से बांग्लादेश से भारत आकर बसे मतुआ समुदाय के लोगों को कई समस्याओं से राहत मिलेगी। अब तो ये भी कहा जा रहा है कि सीएए लागू होने से पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को बड़ा फायदा मिल सकता है।