क्या आपने कभी सुना है कि देश के सबसे शांत और गंभीर माने जाने वाले प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी शायरी से संसद में माहौल बना दिया था? और जवाब देने वाली थीं भाजपा की दमदार नेता सुषमा स्वराज! राजनीति के इस शायराना अंदाज को जानने के बाद आप भी मुस्कुराए बिना नहीं रह पाएंगे।
डॉ. मनमोहन सिंह – एक अनोखे अंदाज के प्रधानमंत्री
डॉ. मनमोहन सिंह को दुनिया एक बेहतरीन अर्थशास्त्री, पॉलिसीमेकर और राजनेता के तौर पर जानती है। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। लेकिन उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान, विपक्ष उन्हें अक्सर ‘खामोश पीएम’ कहकर तंज कसता था। ऐसा माना जाता था कि भाषण कला और राजनीति की तीखी बहसों में उनकी पकड़ उतनी मजबूत नहीं थी। लेकिन जब उन्होंने शेरो-शायरी का सहारा लिया, तो विपक्ष भी उनकी बात सुनने और मुस्कुराने पर मजबूर हो गया।
संसद में हुआ शायराना मुकाबला (2011)
23 मार्च 2011 का दिन, लोकसभा में ‘वोट के बदले नोट’ पर चर्चा हो रही थी। विपक्ष ने प्रधानमंत्री पर सवाल उठाए और सुषमा स्वराज ने शायरी के जरिए कटाक्ष किया:
“तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि कारवां क्यों लुटा, मुझे रहज़नों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।”
पूरा संसद ठहर गया। सबकी नजरें प्रधानमंत्री पर थीं। डॉ. मनमोहन सिंह ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया:
“माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक तो देख, मेरा इंतजार तो देख।”
सुषमा स्वराज मुस्कुरा उठीं। सत्ता पक्ष ने मेज थपथपाई और विपक्ष खामोश रह गया।
शेरो-शायरी का दूसरा दौर (2013)
2013 में एक और मौका आया, जब मनमोहन सिंह ने लोकसभा में शायराना जवाब दिया। उन्होंने कहा:
“हमें उनसे वफा की उम्मीद, जो नहीं जानते वफा क्या है।”
सुषमा स्वराज ने फिर मोर्चा संभालते हुए कहा, “शेर का एक अदब होता है, उसे उधार नहीं रखा जाता। मैं प्रधानमंत्री का उधार चुकता करना चाहती हूं।” उन्होंने जवाब में दो शेर पढ़े।
स्पीकर मीरा कुमार ने मजाकिया अंदाज में कहा, “फिर उन पर उधार हो जाएगा।” पूरा सदन ठहाकों से गूंज उठा।
शायराना राजनीति की मिसाल
डॉ. मनमोहन सिंह और सुषमा स्वराज का यह शायराना अंदाज राजनीति की वह नजीर है, जहां बहस में तंज और कटाक्ष के साथ तहजीब और अदब भी देखने को मिला। यह दिखाता है कि राजनीति में शब्दों का खेल कितना मजबूत हो सकता है।
डॉ. मनमोहन सिंह का यह अंदाज उस धारणा को तोड़ता है कि वह सिर्फ ‘खामोश पीएम’ थे। वहीं, सुषमा स्वराज की शायरी ने राजनीति में साहित्य और तहजीब का जादू बिखेरा। यह किस्सा राजनीति के शायराना दौर का एक खूबसूरत अध्याय है।
तो दोस्तों, आपको क्या लगता है, राजनीति में इस तरह के शायराना अंदाज का आज भी चलन होना चाहिए? अपने विचार कमेंट में जरूर बताएं!