राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद और उसकी बहन होलिका से जुड़ी पौराणिक कथा तो हर किसी ने सुनी है। लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि होली से जुड़ी सिर्फ एक नहीं बल्कि कई पौराणिक कथाएं हैं। जिनमें से तीन कथाओं के बारे में आज हम आपको भारतिका पर बताने वाले हैं। सबसे पहले शुरूआत करते हैं भगवान कृष्ण और उनके मामा कंस से जुड़ी कहानी से..
एक पौराणिक कथा के अनुसार जब कंस को पता चला कि उसकी बहन देवकी का 8वां पुत्र उसकी मौत का कारण बनेगा, तो उसने सबसे पहले अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को जेल में बंद करा दिया, इसके बाद वो उनके नवजात बच्चों को मार दिया करता। इस बीच एक दिन कंस को मालूम चला कि देवकी के 8वें बेटे का जन्म हो चुका है। लेकिन वो जेल में नहीं बल्कि गोकुल में है। ये जानने के बाद कंस ने सबसे गोकुल के सभी नवजात शिशुओं को मारने का फैसला किया। इसके लिए उसने पूतना नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा। पूतना ने साधारण महिला का रूप धारण कर नवजात शिशुओं को अपने दूध की आड़ में विष पिलाना शुरू कर दिया। लेकिन समय रहते पूतना और कंस की इस साजिश का कृष्ण को पता चल गया और उन्होंने फाल्गुन पूर्णिमा के दिन ही पूतना का वध कर दिया। कहते हैं कि तभी से पूतना के वध की खुशी में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली मनाई जाने लगी।
इसके अलावा होली से जुड़ी एक कथा के तार भगवान शिव और कामदेव से जुड़े हुए हैं। एक कथा के अनुसार, संसार की पहली होली भगवान शिव ने ही खेली थी। कहते हैं जब भगवान शिव कैलाश पर्वत पर ध्यान लगाकर तप कर रहे थे, तब कामदेव और रति ने तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव को ध्यान से जगाने के लिए नृत्य किया। ऐसे में जब भगवान शिव का ध्यान भंग हुआ तो उन्होंने गुस्से में कामदेव को ही भस्म कर दिया। जिसके बाद रोते हुए रति ने भगवान शिव से कामदेव को वापिस जगाने की विनती की, तो उन्होंने कामदेव को वापस जीवित कर दिया। बस इसी खुशी में रति और कामदेव ने भोज का आयोजन किया। जिसमें सभी देवी-देवताओं ने शिरकत की। रति ने चंदन के टीके से भी का स्वागत किया और शिव ने डमरू बजाया, वहीं भगवान विष्णू बांसुरी बजाकर प्रसन्न हुए। इस प्रकार सभी देवी-देवताओं ने अपने तरीके से इस दिन को त्योहार की तरह मनाया। ये दिन फाल्गुन पूर्णिमा का था। जिसके चलते तभी से हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन नाच-गाकर रंगों के साथ होली मनाई जाने लगी।
वहीं गुलाल से होली खेलना किसे नहीं पसंद लेकिन क्या आपने कभी जानने की कोशिश की है कि रंग वाली होली खेलने की शुरूआत कब और कैसे हुई। या इसके पीछे क्या कहानी है। अगर नहीं तो होली की तीसरी कथा में हम आपको बताते हैं। दरअसल एक पौराणिक कथा के अनुसार, रंग वाली होली खेलने का सीधा संबंध श्री कृष्ण और ब्रज की राधा से है। कहते हैं कि श्री कृष्ण ने ग्वालों के संग मिलकर होली खेलने की प्रथा शुरू की थी। पौराणिक कथा के अनुसार, श्री कृष्ण का रंग सांवला था जबकि राधा गोरी थीं। ऐसे में वो अपनी मां से हमेशा शिकायत करते थे कि राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला। बस इसी सवाल के जवाब ने यशोदा मईया ने कृष्ण से कहा कि मेरे लाल जो रंग तुम्हारा है, तुम जाकर वही रंग राधा के चेहरे पर लगा दो। फिर देखना राधा और तुम्हारा रंग एक समान हो जाएगा। भगवान कृष्ण ने भी बिना झिझकें अपनी मां के कहे अनुसार ग्वालों के साथ मिलकर रंग तैयार किए और ब्रज में राधा रानी को रंग लगाने पहुंच गए। कहा जाता है कि बस तभी से रंग वाली होली का चलन शुरू हो गया।