काशी, जिसे मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है। इस शहर में मोक्ष पाने के लिए सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। खूबसूरत गंगा घाट और अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध इस शहर में देखने के लिए कई जगहें हैं। वहीं इन जगहों से जुड़ी कई प्राचीन कहानियां भी हैं। जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। इसी कड़ी में भारतिका पर आज हम आपको बताएंगे इस घाट के नजदीक स्थित रत्नेश्वर मंदिर की पौराणिक कथा और विशेषताओं के बारे में।
कहा जाता है कि रत्नेश्वर मंदिर जैसा पूरे विश्व में कोई दूसरा मंदिर नहीं है। ये पूरी दुनिया में इकलौता ऐसा मंदिर है जो एक तरफ को 9 डिग्री झुका हुआ है। इसके एक तरफ झुके होने की वजह से इसे मातृ-ऋण महादेव मंदिर या काशी करवट के नाम से भी जाना जाता है। ये मंदिर महादेव को समर्पित है। इस मंदिर के निर्माण को लेकर कई कहानियां सुनने को मिलती हैं। कई मान्यताएं हैं जिनसे इस मंदिर का इतिहास जुड़ा हुआ है।
रेवेन्यू रिकॉर्ड के मुताबिक, इस मंदिर का कंस्ट्रक्शन 1825 से 1830 के बीच हुआ था। रीजनल आर्कियोलॉजी ऑफिसर के मुताबिक यह 18वीं शताब्दी में बनकर तैयार हुआ था। जबकि घाट के आसपास बसे पुरोहितों का मानना है कि रत्नेश्वर महादेव की स्थापना 15वीं सदी में हुई थी। लेकिन इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं है। हालांकि 1860 के दशक में इस मंदिर की कुछ तस्वीरें जरूर देखने को मिलती हैं। जिनसे मंदिर की पौराणिकता और धार्मिक महत्त्व का पता चलता है।
बात करें इस मंदिर के निर्माण की, तो इसको लेकर भी कई मान्यताएं हैं जिनके आधार पर कौन सी कहानी सही है या कौन सी गलत ये कहना मुश्किल है। इनमें दो कहानियां सबसे लोकप्रिय हैं, जिनमें एक कहानी कहती है कि इस मंदिर का निर्माण अहिल्या बाई की दासी ने करवाया था। अहिल्या बाई होलकर शहर में मंदिर और कुण्डों का निर्माण करा रही थीं। उसी समय रानी की दासी रत्ना बाई ने भी मणिकर्णिका कुण्ड के नजदीक शिव मंदिर निर्माण कराने की इच्छा जताई। और इस मंदिर को बनवाने के लिए अहिल्या बाई से पैसे उधार लिये। इस मंदिर को देखकर आहिल्या बाई खुश तो हुईं मगर उन्होंने रत्नाबाई से कहा कि वो इस मंदिर को अपना नाम ना दें। मगर दासी ने उनकी बात ना मानते हुए मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रखा। जिसपर अहिल्या बाई ने नाराज होकर श्राप दिया कि इस मंदिर में बहुत कम ही दर्शन-पूजन हो पाएंगे और तभी से ये मंदिर टेढ़ा हो गया। जिसके चलते ये साल में ज्यादातर समय गंगा में डूबा रहता है।
इसके अलावा एक दूसरी कहानी भी है, जो अक्सर लोगों की जुबां से सुनने को मिलती है। इस कहानी के मुताबिक, 15 और 16वीं शताब्दी के बीच कई राजा-रानियां काशी वास के लिए आए। उन्हीं में से एक राजा मान सिंह भी थे। जिनका एक सेवक भी अपनी मां रत्नाबाई के साथ काशी आया था और उसने अपनी मां के लिए एक शिव मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर के निर्माण के लिए सेवक ने देश के कई हिस्सों से शिल्पकारों को बुलवाया और मंदिर के बनते ही उसने घोषणा कर कहा कि उसने अपनी मां के दूध का कर्ज उतार दिया। जिसे सुनकर उसकी मां रत्नाबाई की भावनाओं को काफी ठेस पहुंची। जब बेटे ने मां से कर्ज की बात कहते हुए मंदिर में दर्शन करने को कहा तो वह बाहर से ही प्रणाम करते हुए चली गई। बेटे ने रोककर कहा, कि मां अंदर दर्शन नहीं करोगी क्या? इस पर रत्नाबाई ने कहा कि कैसे करूं यह मंदिर तो सही बना ही नहीं। बेटे ने जैसे ही पलट कर देखा, वैसे ही मंदिर एक तरफ धंस गया और टेढ़ा हो गया।
मान्यता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मां का कर्ज कभी भी चुकाया नहीं जा सकता और इसी कहानी से इस मंदिर को मातृ ऋण का भी नाम दिया गया है। लेकिन वास्तव में मंदिर का निर्माण किसने और कब किया यह अभी भी एक रहस्य बना हुआ है। कहते हैं कि मॉनसून के दौरान इस मंदिर में कोई भी पूजा-पाठ नहीं की जाती क्योंकि लोगों का मानना है कि ये मंदिर शापित है और यहां पूजा करने से उनके घर में भी कुछ बुरा हो सकता है।
अब बात आती है मंदिर की बनावट की, तो मंदिर के शिखर का निर्माण नागर शिखर शैली के अनुसार एक फमसन मंडप के साथ किया गया था, जो खंभों से सजा हुआ है। ये मंदिर बनारस के बाकी मंदिरों से काफी निचले स्तर पर बना हुआ है। इस मंदिर का गर्भगृह साल के ज्यादातर समय गंगा के नीचे ही रहता है। कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो, मंदिर की ऊंचाई 74 मीटर है, जो इटली के लीनिंग टावर ऑफ पीसा से लगभग 20 मीटर ज्यादा है। वहीं उसके मुकाबले ज्यादा झुका भी है।
हैरानी की बात ये है कि कुछ पुरानी तस्वीरों में मंदिर को सीधा खड़ा देखा जा सकता है। हालाँकि आज की तस्वीरों में ये मंदिर तिरछा दिखाई देता है। जिसको लेकर कहा जाता है कि बहुत पहले ये घाट ढ़ह गया था। उसी समय ये एक तरफ को झुक गया। बस तभी से मंदिर तिरछा हो गया है। बावजूद इसके आज भी बहुत कम लोग इस मंदिर के बारे में जानते हैं। लेकिन ये मंदिर काशी के सबसे खूबसूरत एवं रहस्यमय मंदिरों में से एक माना जाता है।