राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश के इंदौर में संघ के ‘घोष वादन’ कार्यक्रम में भाग लिया। यह कार्यक्रम दशहरा मैदान में आयोजित किया गया था। जहाँ उन्होंने भारतीय संस्कृति और संगीत की महानता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत पीछे रहने वाला देश नहीं है। हम विश्व के अग्रणी देशों की पंक्ति में खड़े होकर अपनी संस्कृति और परंपराओं का प्रदर्शन कर सकते हैं। भागवत ने भारतीय संगीत और पारंपरिक वादन के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि ये अनुशासन, संस्कार और सद्भाव का संदेश देते हैं। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि वे संघ के स्वयंसेवकों के साथ भारत के नवनिर्माण अभियान में शामिल हों।
संगीत में श्रम और समर्पण का योगदान
मोहन भागवत ने कार्यक्रम में प्रस्तुत किए गए संगीत के बारे में कहा कि जो कार्यकम आपने देखा, इतनी सारी रचनाएं बजाने वाले सभी संगीत साधक नहीं हैं। सभी ने अपने व्यस्त जीवन से समय निकालकर कठिन परिश्रम और समर्पण से यह प्रस्तुति तैयार की है। उन्होंने बताया कि शुरुआत में मिलिट्री और पुलिस बैंड्स से प्रेरणा लेकर कार्यकर्ताओं ने संगीत सीखा। एक धुन तैयार करने में दस-दस दिन लग जाते थे, लेकिन आत्मविश्वास और लगन से यह संभव हुआ।
देशभक्ति से प्रेरित संगीत
संघ प्रमुख ने कहा कि शुरुआती दिनों में संघ के पास संगीत के लिए संसाधन नहीं थे। स्वयंसेवक विभिन्न माध्यमों से धन और प्रेरणा जुटाते थे। भारतीय तालों पर आधारित संगीत वादन शुरू हुआ, जिसकी मूल प्रेरणा देशभक्ति रही। भागवत ने कहा कि जो कुछ अन्य देशों के पास है, वह भारत में भी होना चाहिए।
संगीत और अनुशासन का संदेश
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संघ के स्वयंसेवक जो भी कलाएं सीखते हैं, वह प्रदर्शन या झगड़े के लिए नहीं होतीं। उन्होंने कहा, “लाठी चलाना वीरता का प्रतीक है, लेकिन इसका उद्देश्य डर को समाप्त करना और अनुशासन में रहना है।” भागवत ने संगीत को एकता और समन्वय का माध्यम बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय संगीत सुर और ताल के सामंजस्य पर आधारित है, जो सभी को साथ चलना और एकजुट रहना सिखाता है।
गौरतलब है कि संघ प्रमुख के इस भाषण ने भारतीय संगीत और परंपराओं की शक्ति और महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि संगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह अनुशासन, समर्पण और देशभक्ति को भी बढ़ावा देता है।