क्या आप जानते हैं कि नेशनल अवॉर्ड्स जीतने वाली बॉलीवुड की ये दिग्गज एक्ट्रेस कभी पेट्रोल पंप पर कॉफी बेचती थीं और अपनी मां से नाराज होकर दो बार जान देने की कोशिश कर चुकी थीं? आखिर उनकी जिंदगी में ऐसा क्या हुआ था? चलिए, आज जानते हैं शबाना आजमी की जिंदगी के वो अनसुने और हैरान कर देने वाले किस्से जिन्हें सुनकर आप चौंक जाएंगे।
बॉलीवुड की दमदार अदाकारा और नेशनल अवॉर्ड्स की मलिका शबाना आजमी का सफर जितना शानदार है, उतना ही संघर्ष भरा भी। जहां एक तरफ उन्होंने अपनी कला से लाखों दिलों को छुआ, वहीं दूसरी ओर उनके जीवन में ऐसे उतार-चढ़ाव भी आए, जो किसी को भी हिला कर रख दें।
संघर्षों की शुरुआत:
18 सितंबर 1950 को हैदराबाद में जन्मीं शबाना आजमी, मशहूर शायर कैफी आजमी और थिएटर आर्टिस्ट शौकत आजमी की बेटी हैं। फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक खास जगह बनाने से पहले शबाना का बचपन उतना आसान नहीं था। मुंबई के क्वीन मैरी स्कूल से पढ़ाई के बाद उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से साइकोलॉजी में डिग्री ली और फिर FTII पुणे से एक्टिंग की पढ़ाई की।
लेकिन पढ़ाई के दौरान, शबाना ने अपने परिवार की मदद के लिए पेट्रोल पंप पर कॉफी बेचना शुरू कर दिया। यह सोचकर हैरानी होती है कि नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली ये अभिनेत्री कभी 30 रुपये कमाने के लिए इतनी मेहनत करती थीं। लेकिन किसे पता था कि ये लड़की एक दिन बॉलीवुड में इतिहास रचने वाली है।
मां के साथ टकराव और आत्महत्या की कोशिश:
शबाना के बचपन की कहानी भी कम फिल्मी नहीं है। शबाना की मां, शौकत आजमी, अपनी किताब ‘कैफी एंड आई: ए मेमॉयर’ में लिखती हैं कि शबाना बेहद जिद्दी थीं। शबाना ने महज 9 साल की उम्र में अपनी जान देने की कोशिश की थी। वजह? उन्हें लगा कि उनकी मां उनके भाई बाबा आजमी से ज्यादा प्यार करती हैं। एक दिन शबाना की थाली से ब्रेड उठाकर उनकी मां ने बाबा की थाली में रख दी। इससे नाराज होकर शबाना ने स्कूल की लैब में जाकर केमिकल पीने की कोशिश की।
इसके बाद एक और घटना हुई जब उनकी मां ने गुस्से में कह दिया, “घर छोड़कर चली जाओ।” इस पर शबाना ने सच में ट्रेन के सामने कूदने की कोशिश की, लेकिन गार्ड ने समय रहते उन्हें बचा लिया। ये घटनाएं बताती हैं कि उनके अंदर कितनी भावुकता और गुस्सा भरा हुआ था।
फिल्मी करियर की शुरूआत:
शबाना आजमी ने 1974 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘अंकुर’ से अपने करियर की शुरुआत की। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस फिल्म के लिए वे पहली पसंद नहीं थीं? कई नामी एक्ट्रेस ने इस रोल को ठुकरा दिया था। आखिरकार शबाना ने ये मौका पाया और अपनी अदाकारी से ऐसा जलवा बिखेरा कि फिल्म को नेशनल अवॉर्ड मिला।
इसके बाद तो शबाना ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। ‘अर्थ’, ‘कंधार’, ‘पार’, और ‘गॉडमदर’ जैसी फिल्मों ने उनकी अदाकारी को अमर कर दिया। 1982 में फिल्म ‘अर्थ’ में उनकी परफॉर्मेंस के साथ जगजीत सिंह की गजल ‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो’ आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है।
शबाना की मां ने अपनी किताब में लिखा कि उनके और शबाना के बीच अक्सर बहस हो जाया करती थी। हालांकि, शबाना ने इन सारे संघर्षों को अपनी प्रेरणा बनाया और खुद को साबित किया।
कला और कमर्शियल सिनेमा दोनों में धमाल:
शबाना ने न सिर्फ कला फिल्मों में बल्कि कमर्शियल सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी। उनकी फिल्मों की गिनती सिर्फ बॉक्स ऑफिस कलेक्शन से नहीं, बल्कि उनके दमदार किरदारों से होती है। उन्हें 5 नेशनल अवॉर्ड और कई फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल चुके हैं।
निजी जिंदगी और इंस्पिरेशन:
पेट्रोल पंप पर कॉफी बेचने से लेकर सिल्वर स्क्रीन की रानी बनने तक, शबाना आजमी का सफर हर किसी के लिए प्रेरणा है। वह सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं, बल्कि संघर्ष, जज्बा और कामयाबी की जीती-जागती मिसाल हैं।
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