मध्यप्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौत के मामलों ने कफ सिरप की सुरक्षा को लेकर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। ताजा घटनाओं में दूषित सिरप के कारण बच्चों की जान जाने का आरोप सामने आया है, जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग से लेकर मंत्रालय तक हरकत में आ गया है। मध्यप्रदेश के कई जिलों में बीते दिनों 20 से अधिक बच्चों की मौत का मामला सामने आया। शुरुआती जांच रिपोर्ट में यह सामने आया है कि दूषित कफ सिरप के सेवन से बच्चों की किडनियां फेल हुईं, जिससे उनकी जान गई। कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने पुष्टि की है कि संदिग्ध कफ सिरप को जिले में प्रतिबंधित कर दिया गया है और मामले की विस्तृत जांच जारी है।
इस बीच स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) ने एडवाइजरी जारी कर कहा है कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप न दी जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि इस उम्र में कफ और कोल्ड सिरप बच्चों पर गंभीर असर डाल सकते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी जानकारी दी है कि पानी, एंटोमोलॉजिकल वेक्टर और श्वसन सैंपल्स की जांच पुणे की एनआईवी, एनईईआरआई और अन्य लैब्स में कराई जा रही है। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि संदिग्ध सिरप में प्रोपिलीन ग्लाइकॉल मौजूद नहीं था, जो अक्सर दूषित डीईजी का स्रोत होता है।
इसी बीच राजस्थान के भरतपुर जिले के वैर क्षेत्र के लुहासा गांव में दो साल के मासूम तीर्थराज की मौत ने विवाद खड़ा कर दिया। परिजनों का आरोप है कि वैर के सरकारी अस्पताल से मिली कफ सिरप पिलाने के बाद बच्चे की हालत बिगड़ी और बाद में जयपुर के जेके लोन अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। हालांकि चिकित्सा विभाग ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि अस्पताल रिकॉर्ड और रोगी पर्चे में प्रतिबंधित कफ सिरप डेक्सट्रोमेथॉरफन का उल्लेख नहीं है। विभाग का कहना है कि बच्चे को सामान्य दवाएं दी गई थीं और मौत का कारण अन्य स्वास्थ्य समस्या या एलर्जी भी हो सकता है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार है।
सीकर जिले में भी एक बच्चे की मौत को लेकर विवाद उठा था। विभाग ने दावा किया कि वहां भी डेक्सट्रोमेथॉरफन सिरप नहीं दी गई थी। हालांकि, सीकर के अजीतगढ़ ब्लॉक की एक पीएचसी में एक बच्चे को प्रतिबंधित दवा लिखे जाने पर डॉक्टर और फार्मासिस्ट को निलंबित कर दिया गया। राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आरएमएससीएल) ने केसन्स फार्मा की कफ सिरप समेत 22 सैंपल जांच के लिए भेजे हैं। चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि डॉक्टरों को प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करने और बिना चिकित्सकीय सलाह दवा न देने की हिदायत दी गई है। सीकर के सीएमएचओ डॉ. अशोक महरिया ने भी अपील की कि ग्रामीण इलाके के लोग बिना डॉक्टर की सलाह के दवा बच्चों को न दें। उन्होंने कहा कि विभागीय लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी, इसलिए संबंधित स्टाफ को सस्पेंड किया गया है। लगातार मौतों और विवादों से राजस्थान और मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों में दहशत का माहौल है। लुहासा गांव के लोगों ने तो अस्पताल घेराव की चेतावनी तक दी है। परिजन मांग कर रहे हैं कि मौतों की जांच स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो।
इन घटनाओं ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सरकारी अस्पतालों में दवाओं की जांच व्यवस्था इतनी ढीली है कि मासूम बच्चों की जान जोखिम में पड़ रही है? क्या सिर्फ एडवाइजरी जारी कर देना पर्याप्त है या फिर दवा वितरण प्रणाली पर कड़ी निगरानी भी जरूरी है?