मुस्लिम समुदाय का प्रमुख त्योहार बकरीद भारत समेत कई देशों में मुस्लिमों द्वारा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस त्योहार को ईद-उल-अजहा और धू अल-हिज्जा के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय उप-महाद्वीप में बकरीद के नाम से मशहूर इस त्योहार में मुस्लिम समाज के लोग भेड़-बकरों जैसे चौपाय जानवरों की कुर्बानी देकर ये त्योहार मनाते हैं। ये प्रथा लगभग 1400 सालों से भी ज्यादा समय से चली आ रही है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि मुस्लिम समाज यह त्योहार क्यों मनाता है? और इस त्योहार को मनाने के पीछे का इतिहास क्या है, अगर नहीं तो इस आर्टिकल में आज हमको बताएंगे वो पूरी कहानी जिसके बाद से मनाया जाने लगा बकरीद का त्योहार।
दरअसल ईद-उल-अजहा पर जानवर की कुर्बानी की प्रथा इस्लाम के पैगंबर हजरत इब्राहिम से जुड़ी हुई है। वहीं इस प्रथा की शुरूआत जिस घटना के बाद हुई थी, उसका जिक्र यहूदी मजहब की किताब तोराह में भी किया गया है। जिसके अनुसार, पैगंबर हजरत इब्राहिम को एक रात अल्लाह का ख्वाब आया, जिसमें उन्होंने इब्राहिम से अपनी सबसे कीमती चीज को कुर्बान करने की बात कही थी। आपको बता दें कि हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे और उनका बेटा इस्माइल उनके लिए सबसे अजीज़ था। इस्लामिक जानकारों की मानें तो ये अल्लाह का हुक्म था, जिसके चलते हजरत इब्राहिम अपने अजीज़ बेटे की कुर्बानी के लिए भी तैयार हो गए।
मगर इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे इस्माईल को कुर्बान करने वाले थे तब खुदा ने जिब्रईल नाम के फरिश्ते को हुक्म दिया कि वह जन्नत से एक बकरा ले जाकर इस्माईल की जगह रख दें। इस तरह जिस पल इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे। उसी पल इस्माईल की जगह वहां बकरा आ गया और इब्राहिम ने उसकी कुर्बानी दे दी। हालांकि एक थ्योरी ये भी कहती है कि ये महज अल्लाह की एक परीक्षा थी, जिसपर हजरत इब्राहिम ने खरा उतरकर अपनी वफादारी साबित की थी। लेकिन इसके बाद से ईद पर कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हो गई। इसके बाद आगे चलकर पैगंबर मोहम्मद ने सभी मुसलमानों को इस प्रथा को इसी तरह आगे निभाने के लिए कहा। जिसके कारण आज इस्लामिक लोग ईद-उल-अजहा का त्योहार मनाते हैं।
आपको बता दें कि सारी दुनिया के मुसलमान साल में ईद के दो त्योहार मनाते हैं। पहला ईद-उल-फित्र जिसे मीठी ईद भी कहा जाता है और दूसरा ईद-उल-अजहा.. जिसके बारे में हमने इस आर्टिकल में आपको बताया। ईद-उल-अजहा यानी कि बकरीद का त्योहार इस्लामी कैलेंडर के आखिरी महीने में मीठी ईद के ठीक 2 महीने 9 दिन के बाद जुल हिज्जा में आता है। मुस्लिम समुदाय के लोग बकरीद की शुरूआत सुबह नमाज पढ़ने के साथ करते हैं। और नमाज के समापन पर एक-दूसरे से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। इसके बाद कुर्बानी की रस्म ईद-उल-अजहा को सबसे खास बनाती है। इतना ही नहीं, बकरीद पर जो जानवर कुर्बान किया जाता है उसके गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा कुर्बानी करने वालों के लिए, एक उस शख्स के रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए, वहीं तीसरा हिस्सा गरीबों में बांटा जाता है।