बात 1999 की है। अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने पार्टी और अटल जी के खिलाफ मोर्चा ले लिया था, उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी और रामप्रकाश गुप्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। जब यह विवाद चरम पर था, वाजपेयी जी लखनऊ पहुंचे। दोनों की कटुता इस हद तक बढ़ चुकी थी कि लखनऊ के अखबारों में उस रोज ये कयास भरी खबरें भी छपीं थी कि कल्याण सिंह राजभवन में प्रधानमंत्री से मिलने जाएंगे या नहीं। उसी दौरान एक वरिष्ठ पत्रकार अटल जी से मिलने राजभवन पहुंचे। उऩ्होंने देखा कि कल्याण सिंह अटल जी से मिलकर बाहर आ रहे हैं। जब वो पत्रकार अटल जी से मिले तो उन्होंने पूछा – क्या कल्याण सिंह आए थे? अटल जी ने सिर हिलाकर ‘हां’ कहा। क्या बात हुई? उन्होंने सवाल को अनसुना कर दिया। पत्रकार महोदय ने दुबारा पूछा अटल जी ने फिर अनसुना किया। दाहिने कान से अटल जी को सुनने में कुछ परेशानी थी। वे ‘हियरिंग एड’ लगाते थे। पत्रकार महोदय ने दूसरी तरफ जाकर जोर देकर पूछा क्या बात हुई, कल्याण सिंह से? आपसे क्या शिकायत है उन्हें? अटल जी ने अपनी सदरी की जेब में हाथ डाला और ‘हियरिंग एड’ निकाल कर दिखाते हुए कहा- “मैंने तो कुछ सुना ही नहीं। मेरी मशीन जेब में थी।“ अप्रिय बात न सुनने की यह भी एक अटल शैली थी। वो वरिष्ठ पत्रकार थे हेमंत शर्मा।
अप्रिय न सुनने की “अटल” शैली – एक सच्ची घटना

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