शारदीय नवरात्र का पावन पर्व अब अपने समापन की ओर है। मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की साधना और घटस्थापना से शुरू हुआ यह उत्सव, महानवमी के साथ पूर्ण होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पूजा के दौरान रखी गई सामग्री का आगे क्या किया जाए? आइए जानते हैं इसका सही विधि-विधान। यदि आपने मिट्टी का कलश स्थापित किया है, तो उसे नदी या तालाब में विसर्जित करें। वहीं, तांबे, पीतल या अन्य धातु के कलश को सुरक्षित रखकर अगली नवरात्रि में फिर से प्रयोग किया जा सकता है। महानवमी पर कलश का नारियल फोड़कर प्रसाद रूप में परिवार और कन्याओं को अर्पित किया जाता है। इसका एक टुकड़ा कन्या पूजन में भी दिया जाता है।
नवमी पूजन के बाद कलश का जल घर के कोनों में छिड़कें। मान्यता है कि इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इसे तुलसी पर अर्पित करना भी बेहद शुभ माना गया है। नवरात्रि की अखंड ज्योत को स्वयं न बुझाएं। जब घी या तेल समाप्त हो जाए और दीपक अपने आप शांत हो जाए, तभी उसकी बाती को पूजन सामग्री के साथ नदी में विसर्जित करें। दीपक को दोबारा प्रज्वलित भी किया जा सकता है।
कलश में रखा सिक्का निकालकर तिजोरी, गल्ले या धन-स्थान पर रखें। यह समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है। नवमी पर उगाई गई जौ को नदी या तालाब में विसर्जित करना ही शास्त्रसम्मत है। इन्हें कहीं भी फेंकना अशुभ माना जाता है.
नवरात्र सिर्फ पूजा-पाठ का पर्व नहीं, बल्कि यह हमें जीवन में अनुशासन, श्रद्धा और सकारात्मक ऊर्जा का महत्व भी सिखाता है. कलश विसर्जन और अन्य पूजन सामग्री का सही तरीके से समापन करना, न केवल परंपरा का सम्मान है बल्कि घर में सुख-समृद्धि का मार्ग भी खोलता है. मां दुर्गा की कृपा से आपके जीवन में हमेशा आनंद, शांति और खुशहाली बनी रहे.