दालों की खेती के मामले में देखा जाए तो भारत दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत में दाल की खेती करीब 20 प्रतिशत भूमि पर की जाती है। वहीं इनमें उड़द और मूंग दाल की बात करें, तो इनकी खेती करके किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। अगर किसान भाई-बहन सही तरीके से खेतों का प्रबंधन करें और फसल का अच्छे से ध्यान रखें, तो उन्हें उचित पैदावार भी हासिल हो सकती है। लेकिन आपको बता दें कि उड़द और मूंग की खेती में कीट और रोगों का खतरा भी अधिक है।
खासकर कि मूंग की फसल में कीटों का प्रकोप होने की संभावना सबसे अधिक रहती है। इसलिए इसके खेतों में उचित निगरानी की आवश्यकता होती है। ताकि किसान शुरूआत में रोग और कीट के लक्षण दिखने पर इसके उपचार का प्रबंध कर सकें और फसल को खराब होने से बचा सकें।
इसी कड़ी में बिहार कृषि विभाग लगातार किसानों को जागरूक करता रहता है। हाल ही में प्रदेश के कृषि विभाग की ओर से सोशल मीडिया हैंडल एक्स पर एक पोस्ट किया गया। जिसमें किसानों को मूंग और उड़द की खेती को लेकर सलाह जारी की गई है। इस पोस्ट में किसानों को बताया गया है कि इन फसलों की खेती करने वाले किसानों को सिंतबर महीने में कौन-कौन से कृषि कार्यों पर ध्यान देना चाहिए, साथ ही पीला मोजैक रोग से फसल को बचाने के लिए क्या क्या उपया अपनाने चाहिए।
तो चलिए सबसे पहले नजर डालते हैं कि आखिर पीला मोजैक रोग से फसल के बचाव के लिए किसान क्या तरीका अपना सकते हैं।
- सबसे पहले तो किसानों को उड़द और मूंग के खेतों की अच्छी तरह से निगरानी करने की आवश्यकता है, जैसे ही आपको पौधे में पीला मोजैक के लक्षण दिखाई देने लगे, वैसे ही पौधे के उतने हिस्से को उखाड़ कर फेंक दें।
- इस रोग के नियंत्रण के लिए किसानों के लिए जरूरी है कि वो फसल चक्र को अपनाएं और रोग विरोधी किस्मों की खेती करना शुरू करें।
- विशेषज्ञों के अनुसार, पीला मोजैक रोग के लिए जैसिड और सफेद मक्खी को जिम्मेदार माना जाता है। जिसके प्रबंधन के लिए किसान फसलों पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल को 1 एमएल प्रति तीन लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं।
अब बात करते हैं कि आखिर माहू कीट फसलों पर किस तरह से असर डालता है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो उड़द और मूंग की फसल में लगने वाला माहू कीट पत्तियों और फूलों का रस चूसते हैं, जिसके चलते पौधों की पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं। इसी के साथ फूल झड़ना शुरू हो जाते हैं। जिससे फलियों की संख्या में कमी आने लगती है। इससे बचाव के लिए किसानों के लिए जरूरी है कि वो नीम आधारित 3.4 मिली दवा को प्रति लीटर पानी में घोलकर फसलों पर छिड़काव करें। और अगर माहू का प्रकोर गंभीर रूप से बढ़ चुका है तो ऐसी स्थिति में किसान रासायनिक दवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. का 3 मिली दवा को 10 लीटर पानी की दर से मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।
इसके बाद अब बात करते हैं पीला मोजैक के लक्षणों की, जब भी पीला मोजैक रोग फसल पर प्रभाव डालता है तो फसलों का रंग पीला पड़ने लगता है। मूंग के अलावा यह सोयाबीन की फसलों पर भी तेजी से फैलता है, ये एक प्रकार का वायरल रोग होता है, जो तेजी से फसलों पर अपना प्रकोप डालता है। इसके प्रकोप से पौधों की पत्तियों में छेद होने लगते हैं साथ ही सितंबर अक्टूबर के समय यह रोग तेजी से फसलों में दिखाई देने लगता है। आमतौर पर जब बारिश का मौसम खत्म होने लगता है और खेतों में नमी की मात्रा संतुलित होने लगती है, वैसे ही इस रोग का प्रकोप फसलों पर दिखाई देने लगता है। ये रोग फसलों को पूरी तरह से खराब कर सकता है।