गांधी परिवार, जिसे देश के सबसे बड़े राजनैतिक घराने के तौर पर जाना जाता है। देश के पहले प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी, इंदिरा गांधी के दो बेटे राजीव गांधी और संजय गांधी ने भी राजनीति में कदम रखा। लेकिन इस बीच पारिवारिक और राजनीतिक उतार चढ़ाव के चलते गांधी परिवार दो हिस्सों मे बंट गया। ये तब हुआ जब एक रात अचानक संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने अपने दो साल के बेटे वरूण गांधी के साथ प्रधानमंत्री आवास छोड़ दिया। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि मेनका गांधी को ये कदम उठाना पड़ा, क्यों अचानक गांधी परिवार एक रात के बाद दो हिस्सों में बंट गया। आखिर क्या हुआ था 28 मार्च 1982 की उस रात को..
जनवरी 1980 में जब इंदिरा गांधी एक बार फिर देश की प्रधानमंत्री बनीं, तो पूरा परिवार प्रधानमंत्री आवास में शिफ्ट हुआ। देश की बागडोर अपने हाथों में लिए इंदिरा को कुछ महीनों का ही समय हुआ था कि दिसंबर 1980 में उनके छोटे बेटे संजय गांधी की एक विमान हादसे में मौत हो गई। यूं कह लीजिए कि संजय गांधी की मौत ही वो वजह थी, जिसके बाद गांधी परिवार टूटना शुरू हुआ। संजय गांधी की मौत से करीब 9 महीने पहले ही मार्च 1980 में उनके इकलौते बेटे वरूण गांधी का जन्म हुआ था। ऐसे में 9 महीने के मासूम को गोद में लिए मेनका गांधी अपने पति को खो चुकी थीं। उस वक्त उनकी उम्र भी कुछ 25 साल रही होगी। धीरे-धीरे समय बीता तो संजय गांधी की विरासत राजीव गांधी के हाथों में जाती देखकर मेनका गांधी निराश होने लगीं।
अक्सर कई बातों पर इंदिरा और मेनका गांधी के बीच बहस होने लगी, उनकी लड़ाईयों के बारे में जिक्र करते हुए खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि दोनों के बीच अनबन इतनी बढ़ चुकी थीं कि उनका एक साथ एक छत के नीचे रहना मुश्किल हो गया था। वहीं स्पेनिश लेखक जेवियार मोरो ने अपनी किताब दि रेड सारी में लिखा कि इंदिरा गांधी उस दौरान एक विदेश दौरे पर गई थीं कि मेनका गांधी ने लखनऊ में अपने समर्थकों के साथ एक सभा का आयोजन किया, हालांकि इस सभा को लेकर इंदिरा गांधी उन्हें पहले ही चेतावनी दे चुकी थीं। जिसके चलते मेनका के इस कदम को इंदिरा गांधी ने गांधी परिवार की रेड लाइन क्रॉस करने के तौर पर लिया।
28 मार्च 1982 की सुबह जब इंदिरा गांधी विदेश दौरे से वापस लौटीं, तो उन्होंने मेनका अभिवादन नजरअंदाज करते हुए कहा कि इस बारे में बाद में बात करेंगे। मेनका भी इसके बाद अपने कमरे में चली गईं। काफी देर बाद एक नौकर ने उनके कमरे का दरवाजा खटखटाया, मेनका ने उसे अंदर आने को कहा। नौकर मेनका के लिए दोपहर का भोजन लेकर कमरे घुसा और उसने कहा कि श्रीमति गांधी नहीं चाहती कि आप बाकी परिवार के साथ लंच करें और वो खाना रखकर चला गया।
इसके बाद करीब एक घंटे बाद नौकर फिर आया और उसने कहा कि प्रधानमंत्री गांधी आपसे मिलना चाहती हैं। ये सुनकर मेनका तुरंत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कमरे में पहुंची, लेकिन वहां कोई नहीं था, कुछ देर बाद इंदिरा गांधी गुस्से से तिलमिलाते हुए कमरे में आईं और उन्होंने कुछ सुने बगैर दो टुक में कहा कि तुम इस घर से तुरंत बाहर निकल जाओ। इंदिरा गांधी इस दौरान अपने साथ वहां धीरेंद्र ब्रह्मचारी और आर. के. धवन को भी साथ लाईं थीं। शायद वो इस बातचीत में उन दोनों को बतौर गवाह वहां मौजूद रखना चाहती थीं।
दरअसल, मेनका गांधी अपने पति संजय गांधी को लेकर उस दौरान एक किताब लिख रही थीं। इस किताब का टाइटल, कंटेट और फोटो को बदलने के लिए इंदिरा गांधी ने पहले ही मेनका गांधी सचेत किया था। लेकिन मेनका ने ये सब कुछ अपने मन के मुताबिक ही रखा और इंदिरा की बात नहीं मानी। इंदिरा ने मेनका से गुस्से में कहा कि तुम्हें पहले ही आगाह किया था कि लखनऊ सभा में मत बोलना, पर तुमने अपनी मर्जी चलाई। अब यहां से निकल जाओ, अपनी मां के घर चली जाओ और इसी समय ये घर छोड़ दो। मेनका की जुबां से पहले निकला कि मैं ये घर नहीं छोड़ना चाहती, मगर इंदिरा गांधी का रवैया देखकर उन्होंने कहा कि मुझे अफना सामान समेटने के लिए कुछ वक्त दीजिए। इंदिरा गुस्से में थीं उन्होंने साफ कहा कि तुम्हारे पास अभी तक बहुत समय था, अब तुम जाओ यहां से तुम्हारा सामान तुम्हें भेज दिया जाएगा।
इसके बाद मेनका ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और अपनी बहन अंबिका को फोन कर सारी घटना की जानकारी दी, साथ ही तुरंत पीएम आवास आने को कहा। अंबिका ने तुरंत पत्रकार और उनके पारिवारिक मित्र खुशवंत सिंह को ये सब बताया और तुरंत प्रेसवालों को प्रधानमंत्री आवास पर भिजवाने की बात कही। रात के 9 बजे थे कि फोटोग्राफर्स समेत पत्रकारों का एक बड़ा समूह सफदरजंग रोड स्थित प्रधानमंत्री आवास के बाहर जमा हो गया। जिन्हें संभालने के लिए पुलिस बल भी तैनात हो गया।
अंबिका भी पीएम आवास पहुंच चुकी थीं, वो अंदर जाते ही भागती हुईं सबसे पहले मेनका के कमरे में गईं, जहां मेनका सूटकेस में अपना सामान ठूस रही थीं। पीछे से इंदिरा में उनके कमरे में आईं और तमतमाते हुए कहा, बाहर निकल जाओं, तुमसे कहा था ना कि अपने साथ कुछ मत ले जाना। इंदिरा का ये बर्ताव देखकर अंबिका हैरान हुईं और उन्होंने विरोध करते हुए कहा कि ये घर मेनका के पति का भी है। जिसके जवाब में इंदिरा ने दो टुक कहा, ये भारत के प्रधानमंत्री का आवास है। बस इतना कहकर इंदिरा बाहर चली गईं। इस दौरान धीरेंद्र ब्रह्मचारी और आर. के. धवन इधर से उधर संदेशवाहक का काम कर रहे थे। ये पूरा घटनाक्रम करीब 2 घंटे तक चलता रहा और बाहर प्रेस की नजरें पीएम आवास के अंदर होती हलचल पर टिकी हुई थीं।
मेनका का सामना गाड़ी में रखा जाने लगा, मेनका घर छोड़कर जाने के लिए लगभग तैयार हो चुकी थीं कि सारी बात उनके दो साल के बेटे वरूण गांधी पर आकर अटक गई। इंदिरा गांधी किसी भी सूरत में अपने पोते को जाने देने के लिए तैयार नहीं थीं, वो चाहती तो थीं कि मेनका घर छोड़कर चली जाएं, लेकिन अपने बेटे की आखिरी निशानी वरूण गांधी को वो खुदसे अलग नहीं करना चाहती थीं। ऐसे में देर रात एक्सपर्ट वकील बुलाए गए, इंदिरा के प्रिंसिपल सेक्रेटरी पी. सी. एलेक्जेंडर भी वहां पहुंचे, लेकिन सभी ने इंदिरा को समझाया कि बच्चे पर मां का कानूनी अधिकार होता है। अगर बात कोर्ट तक भी पहुंची तो मेनका ही वरूण की कस्टडी की हकदार होंगी। आखिर में इंदिरा मान गईं और मेनका अपने दो साल के बेटे वरूण गांधी को लेकर रात के करीब 11 बजे अपनी बहन के साथ चली गईं। यहां से ना केवल गांधी परिवार दो हिस्सों में बंटा बल्कि उनके राजनीतिक सफर भी अलग हो गए। आज जहां मेनका और वरूण गांधी बीजेपी से सांसद हैं, वहीं सोनिया और राहुल गांधी कांग्रेस की कमान संभाल रहे हैं।