रबींद्रनाथ टैगोर के गानें हो या उनकी लिखी कविताएं, आज भी लोग उन्हें उतनी ही दिलचस्पी और प्रेम भाव से सुनते हैं जितना पहले सुना करते थे। हालांकि उनकी लोकप्रियता से जुड़े किस्से तो हर कोई जानता है। लेकिन बहुत कम लोग ही हैं, जिन्हें रबींद्रनाथ टैगोर की निजी जिंदगी और उनकी प्रेमकहानी के बारे में मालूम हो। जी हां रबींद्रनाथ टैगोर का पहला अधूरा प्रेम, अधूरा इसलिए क्योंकि वो उन्हें कभी मिल नहीं सका, और प्रेम इसलिए क्योंकि आजीवन वो अपने इस अधूरे प्रेम की यादों में खोए रहे।
कहते हैं कि उनके प्रेमिका नलिनी को उनका दाढ़ी रखना बिल्कुल पसंद ना था, यही वजह रही कि रबींद्रनाथ टैगोर उनकी याद में हमेशा लंबी-लंबी दाढ़ी रखा करते थे। रबींद्रनाथ टैगोर की प्रेमकहानी का जिक्र उनके साहित्य में भी मिलता है, उन्होंने अपने साहित्यों में अपनी प्रेमिका को नलिनी के नाम से संबोधित किया है। मगर कौन थीं नलिनी, कैसे हुआ दोनों के बीच प्रेम और क्यों रह गया अधूरा… ये सारी जानकारी आज हम आपको भारतिका पर देंगे।
कौन थी अन्नपूर्णा तुरखुद?
अन्नपूर्णा,अन्ना या नलिनी, उन्हें किसी भी नाम से पुकारा जाए, मगर वह हमेशा रबींद्रनाथ टैगोर का पहला प्यार ही बनी रहेंगी। कहानी की शुरूआत हुई साल 1878 में, जब रबींद्रनाथ केवल 17 साल के थे। तब वो पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाने वाले थे, मगर उससे पहले दो महीनों तक उन्हें बंबई रूकना पड़ा। जिनके घर में वो ठहरे थे वह प्रार्थना सभा के संस्थापक डॉ. आत्माराम पांडुरंग तुरखुद का घर था। डॉ. आत्माराम रबींद्रनाथ के बड़े भाई सत्येन्द्रनाथ टैगोर के मित्र हुआ करते थे।
सत्येन्द्रनाथ को यह उम्मीद थी कि अंग्रेज़ी का ज्ञान रखने वाले तुरखुद परिवार के साथ रहने से उनके छोटे भाई रबींद्रनाथ की अंग्रेज़ी भी अच्छी हो जायेगी। उनकी अंग्रेजी सुधारने के लिए इस परिवार से बेहतर कोई नहीं था। हालांकि जब रबींद्रनाथ को अंग्रेजी पढ़ाने की बात आई, तो ये काम डॉ. आत्माराम की बेटी अन्नपूर्णा को सौंपा गया। रबींद्रनाथ से लगभग तीन वर्ष बड़ी अन्नपूर्णा हाल ही में इंग्लैंड से लौटी थीं और इंग्लैंड की संस्कृति, समाज और भाषा से भली-भांति परिचित भी थीं। ऐसा माना जाता है कि इन्हीं दिनों में उन दोनों के बीच प्यार हुआ, जब धीरे-धीरे उनके बीच ये स्नेह भरा रिश्ता बढ़ने लगा, तो टैगोर ने अन्ना का नाम ‘नलिनी’ रख दिया।
इतना ही नहीं, रबीन्द्रनाथ टैगोर की बहुत सी कवितायेँ भी नलिनी से प्रेरित हैं। लेकिन शायद किस्मत को उनका प्यार मंजूर नहीं था। दो महीने बॉम्बे में बिताने के बाद टैगोर ने अन्ना को अलविदा कहा और इंग्लैंड चले गए। अन्नपूर्णा ने दो साल बाद बड़ौदा हाई स्कूल और कॉलेज के स्कॉटिश उपाध्यक्ष हेरोल्ड लिटलडेल से विवाह कर लिया। जिसके बाद वह अपने पति के साथ हमेशा के लिए इंग्लैंड चली गई। लेकिन अन्नपूर्णा का जीवनकाल ही 33 वर्ष में खत्म हो गया। शादी के बाद अन्ना की साल 1891 में किसी कारणवश मृत्यु हो गई।
कहते हैं कि अन्नपूर्णा ने रबींद्रनाथ से मुलाकात के बाद अपना उपनाम ही ‘नलिनी’ रख लिया, वहीं उन्होंने अपने एक भतीजे का नाम भी रबीन्द्रनाथ रखा था। ये सब बातें उन दोनों के बीच रहे प्रेम को दर्शाती हैं और ये बताती हैं कि उनका रिश्ता सिर्फ कुछ सालों का नहीं था, बल्कि उनके मरने के बाद भी जीवित रहा। कहा तो ये भी जाता है कि टैगोर ने अन्नपूर्णा को कभी भुलाया ही नहीं था। वो अक्सर उनके बारे में बात किया करते थे। एक बार अपनी 80 साल की उम्र में उन्होंने नलिनी को याद करते हुए बताया कि कैसे नलिनी ने उन्हें दाढ़ी ना रखने के लिए कहा था।