असम की रहने वाले ऋतूपूर्णा नेओग, जिनका बचपन सभी बच्चों की तरह बिल्कुल आम रहा, लेकिन किशोरावस्था में पहुंचते ही उनके जीवन ने एक नया मोड़ लिया। कल तक खुदको लड़का समझने वाली ऋतूपूर्णा, अब लड़कियों की तरह बर्ताव करने लगीं थीं। स्कूल में बच्चे उन्हें ताने देने लगे थे। जिसके चलते वो कई बार बच्चों से बचने के लिए स्कूल की लाइब्रेरी में जाकर छिप जाया करती थीं। लेकिन इस मुश्किल घड़ी में भी उन्होंने कभी अपनी शिक्षा से मुंह नहीं मोड़ा, वहीं उनके माता-पिता ने भी उनका पूरा साथ दिया। यही वो समय था जब ऋतूपूर्णा को शिक्षा की अहमियत समझ आई। उन्होंने तभी गांवों में मुफ्त लाइब्रेरी बनाने का सपना देखना शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे बढ़ती उम्र के साथ उनके सपने को भी मजबूती मिलती रही। जिसके चलते उन्होंने सोशल वर्क में ग्रेजुएशन कर इसी क्षेत्र में काम किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद ऋतूपूर्णा राज्य की अलग-अलग सोशल वर्क सोसाइटी के साथ मिलकर काम करने लगीं। मगर इस दौरान भी उनके दिमाग में हमेशा अपने लाइब्रेरी के सपने को पूरा करने की चाह जिंदा रही। वो हर महीनें अपनी सैलरी से कुछ किताबें खरीदती रहीं। इस तरह कुछ ही महीनों में उन्होंने अपने पास किताबों का एक अच्छा खासा कलेक्शन कर लिया और साल 2020 में अपने गांव से ही पहली लाइब्रेरी की शुरूआत करने का फैसला किया।
ऐसे में ऋतूपूर्णा ने लॉकडाउन का भी भरपूर इस्तेमाल किया। उन्होंने खुदकों खाली ना रखकर ऑनलाइल स्टोरीटेलिंग प्रोग्राम की शुरूआत की, वो भी असमिया भाषा में, जिसके चलते असम के लोगों को अपनी भाषा में ऋतूपूर्णा का कहानी सुनाना बेहद पसंद आने लगा। नतीजतन, उनका ये प्रोग्राम काफी हिट रहा। जैसे ही लॉकडाउन खत्म हुआ तो बिना दूसरा ख्याल किए ऋतूपूर्णा ने अपने माता-पिता की मदद से गांव में 600 किताबों के साथ Kitape Katha Koi नाम की लाइब्रेरी खोली।
जहां इस लाइब्रेरी की शुरूआत केवल 600 किताबों के साथ हुई थीं वहीं उस लाइब्रेरी में आज करीब 1200 से भी ज्यादा किताबों का कलेक्शन है। खास बात ये है कि ऋतूपूर्णा का सपना सिर्फ उनके गांव तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने इसके बाद असम के एक और गांव में लाइब्रेरी खोली और आज वो राज्य के दो गांवों में मुफ्त लाइब्रेरी चला रही हैं। जिनके कारण 200 से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई में मदद हो रही है। इसके अलावा वो बच्चों का मनोरंजन करने के लिए समय-समय असम के कई गांवों में जाकर अपना स्टोरीटेलिंग प्रोग्राम भी करती हैं।
इतना ही नहीं, ऋतूपूर्णा अपनी इस मुहीम के जरिए लोगों के बीच Gender Discrimination के मुद्दे पर भी बातचीत करती हैं। वो पिछले करीब 2 सालों में 40 से ज्यादा विश्वविद्यालयों और इंस्टीट्यूट्स में जाकर लोगों को इसके प्रति जागरूक कर चुकी हैं।