भारत में मनाए जाने वाले त्योहार भले ही अनगिनत हैं लेकिन हर एक त्योहार की अपनी अलग खासियत और मान्यता है। ऐसा ही एक खास त्योहार आज यानी कि 14 जून से ओडिशा में भी शुरू हो चुका है, जिसे रजोत्सव के नाम से जाना जाता है। आपने अक्सर महिलाओं को ही घर का कामकाज संभालते देखा होगा, जबकि पुरूष बाहरी काम देखते हैं। लेकिन ओडिशा में मनाए जाने वाले इस खास त्योहार के तहत महिलाएं लगभग तीन दिनों तक कोई भी काम नहीं करती हैं। यहां तक की घर की सफाई और खाना बनाने का काम भी पुरूषों द्वारा किया जाता है।
दरअसल, ओडिशा में रजोत्सव तीन दिनों तक चलता है 14 जून से शुरू हो चुके इस त्योहार के तहत महिलाएं 16 जून तक ना तो कोई काम करेंगी और ना ही किसी काम में पुरूषों का हाथ बटाएंगी। इन तीन दिनों के दौरान ओडिशा की महिलाएं हर दिन नए कपड़े पहनती हैं, झूला झूलती हैं वहीं नाच गाकर अपना मनोरंजन करती हैं। हालांकि इस त्योहार को मनाए जाने की शुरूआत सबसे पहले दक्षिण ओडिशा से हुई थी। जो अब धीरे-धीरे पूरे ओडिशा का लोकपर्व बन चुका है।
अब बात आती है कि आखिर क्या है रजोत्सव पर्व और क्यों हुई इसे मनाए जाने की शुरूआत..?
सबसे पहले जानते हैं कि आखिर इस त्योहार को मनाने की शुरूआत कैसे हुई.. दरअसल, रजोत्सव ओडिशा में सदियों से मनाया जा रहा है। ये एक प्राचीन त्योहार है जिसको मनाने की शुरूआत ओडिशा के राजा-रानियों द्वारा की गई थी। उनका मानना था कि जिस तरह एक महिला मासिक धर्म चक्र से गुजरती है, उसी तरह पृथ्वी भी मासिक धर्म चक्र से गुजरती है। और ऐसे समय में उसे पर्याप्त आराम, पोषण और कायाकल्प की आवश्यकता होती है। दूसरे शब्दों में, यह पृथ्वी के जीवन और पुनर्जन्म के नवीनीकरण से संबंधित है। इसलिए, ओडिशा में, राजा और रानियाँ इस अवसर को मनाते थे ताकि वे अपनी भूमि और प्रजा का कायाकल्प कर सकें।
हालांकि इस परंपरा के तहत महिलाओं पर इन दिनों के दौरान कई प्रतिबंध लगाए जाते हैं, जैसे इस दिनों महिलाएं ना तो रसोई में जा सकती है, ना ही पैरों में चप्पल पहन सकती हैं, उन्हें नंगे पांव ही रहना होता है, तीन दिन तक महिलाएं बिना पका हुआ भोजन करतीं हैं। खाने में नमक तक नहीं ले सकतीं। हालांकि शहरी क्षेत्रों में कई महिलाएं इन परंपराओं का पालन नहीं करती हैं मगर आज भी ओडिशा के ग्रामीण क्षेत्रों में रजोत्सव का त्योहार सभी मान्यताओं के साथ ही मनाया जाता है।
जहां आज भी हमारे देश में मासिक धर्म को वर्जित माना जाता है, तो वहीं ओडिशा में यह त्यौहार एक अनोखा अवसर है इसे भगवान जगन्नाथ की पत्नी भूदेवी का उत्सव कहा जाता है। इस दौरान पृथ्वी तीन दिनों तक मासिक धर्म चक्र से गुजरती है, चौथे दिन उसे औपचारिक स्नान मिलता है। आपको बता दें कि रजोत्सव के पहले दिन को पहिली राजा के नाम से जाना जाता है। वहीं दूसरे दिन को राजा संक्रांति कहा जाता है। जबकि तीसरे दिन को स्थानीय बोली में भुईन दहाना के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा अंतिम दिन जो औपचारिक स्नान का दिन होता है उसे बसुमता पूजा या बसुमता गधुआ के नाम से भी जाना जाता है।