प्राकृतिक खेती – नेचुरल फार्मिंग – देशी गाय आधारित खेती है। इस कृषि में गाय के गोबर एवं गोमू्त्र से खेतों के लिए विभिन्न प्रकार के तरल पदार्थ एवं खाद तैयार की जाती है। एक देशी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ जीवाणु पाये जाते हैं तथा इसके गोमू्त्र में खनिज लवणों का भंडार भरा पड़ा है। प्राकृतिक कृषि में किसी भी प्रकार के रसायन का प्रयोग नहीं किया जाता है न ही किसी रसायन कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में पूर्ण रूप से प्राकृतिक संसाधनों से खाद तैयारी की जाती है। इसके प्रमुख आधार हैं।
बीजामृत – इससे बीज को शोधित करके बीज को बुवाई के लिए तैयार किया जाता है, जिससे मिट्टी में किसी प्रकार के कीट या बीमारी बीज को खराब न कर सकें।
जीवामृत – यह मिट्टी में उपस्थित कच्चे तत्वों को पकाकर पौधों का भोजन तेैयार करता है। जिससे फसल में वृद्धि होती है।
घन जीवामृत – यह जीवायुक्त सूखा खाद है। इसको फसलों में सुखे खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिससे स्वस्थ फसल मिल सके।
आच्छादन – खेतों में नमी बनी रहे इसके लिए जमीन के ऊपर से घास या पत्ते ढक देते हैं, साथ ही यह खेतों में खरपतवार को नष्ट करता है, जिससे फसलों को पोषण अच्छे से मिल सके।
प्राकृतिक कृषि कम लागत वाली खेती है, जिससे किसान को कम लागत में अधिक उत्पादन मिलता है और फसल भी स्वस्थ पैदा हो जाती है। प्राकृतिक कृषि से कई प्रकार के लाभ हैं। जैसे खेतों के मित्र कीट जमीन में जीवित रहते हैं, जो हमे शुद्ध भोजन देते हैं और मिट्टी का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। दूसरा जमीन में जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है। जिससे हमे शुद्ध भोजन मिलता है। आज रसायन के अधिक प्रयोग ने जमीन से लेकर वायुमण्डल तक को विभिन प्रकार की बीमारियों से घेर लिया है। जीवन बहुत खतरे में पड़ गया है। इसलिए कहते हैं जैसा खाओगे अन्न, वैसा रहेगा तन और मन। अगर हमें जहर मुक्त खाना चाहिए तो इसका एक मात्र तरीका है कि लोग प्राकृतिक कृषि करें।
सामग्री
बीजमृत – गोबर, गोमूत्र, बुझा चूना, मिट्टी व पानी
जीवामृत – गोबर, गोमूत्र, वेशन, गुड , मिट्टी व पानी
घन जीवामृत – गोबर, गोमूत्र, बेसन, गुड, मिट्टी
इन सभी प्रकार का मिश्रण तैयार करने के लिए किसी प्रकार की धातु का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसमें प्लास्टिक या लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। साथ ही तैयार करने के बाद इन चीज़ो को छाया में रखा जाता है।
नोट : इस लेख में दी गई जानकारी उत्तराखंड के प्रगतिशील किसान रमेश मिनान द्वारा दी गई है।