12 अगस्त 1997, सुबह के करीब 10 बजे थे और हर रोज की तरह इस रोज भी गुलशन कुमार अपने घर से पूजा की थाल लेकर जीतनगर में स्थित शिव मंदिर के लिए निकले थे। लेकिन हर दिन की तरह 12 अगस्त को उनका गार्ड उनके साथ नहीं था। तबीयत खराब होने के चलते वो गुलशन कुमार के साथ मंदिर नहीं जा सका था। लेकिन शिव-पार्वती के बड़े भक्त गुलशन कुमार अपने रूटीन के मुताबिक मंदिर गए और 10 बजकर 40 मिनट पर वहां से बाहर निकले।
वो अपनी गाड़ी की ओर बढ़ ही रहे थे कि उन्हें अपने कान के पीछे एक रिवॉल्वर महसूस हुई। जैसे ही उन्होंने पीछे मुडकर देखा वैसे ही एक गोली कुमार के माथे को छूकर निकल गई। जिसके चलते गुलशन सीधे जमीन पर जा गिरे और उनके हाथ से पूजा का सारा सामान नीचे बिखर गया। इसके बाद भी गुलशन कुमार ने हार नहीं मानीं और वहां से भागने की कोशिश की, मगर ना तो वो वहां से भाग सके और ना उनकी मदद के लिए कोई आगे आया।
गुलशन कुमार के ड्राइवर ने हिम्मत दिखाई भी तो कातिलों ने उसके भी दोनों पैरों पर गोली मार दी। इसके बाद दो लोग और कुमार पर गोली चलाते हैं और आखिर में गुलशन कुमार एक दिवार का सहारा लेने की कोशिश करते हैं लेकिन कुल 16 गोलियां लगने के बाद उनके शरीर ने भी उनका साथ छोड़ दिया और मौके पर ही उनकी मौत हो गई।

अब सवाल ये है कि आखिर गोली चलाने वालों की गुलशन कुमार से क्या दुश्मनी थी, और क्या उनके असली कातिल को सजा मिली.. आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे गुलशन कुमार की हत्या की पूरी कहानी.. कब कैसे क्या हुआ सब कुछ विस्तार से.. तो जैसा कि हम बात कर रहे थे गुलशन कुमार हत्याकांड की, जिसके कातिल कौन थे? उनके बारे में जानेंगे लेकिन उससे पहले जान लेते हैं कि गुलशन कुमार कौन थें?
11 जुलाई 1983 को टी-सीरिज की स्थापना करने वाले गुलशन कुमार दिल्ली में पैदा हुए थे, यहीं पले बढ़े और अपने पिता के साथ एक जूस की दुकान पर काम करते थे। जब कुछ समय बाद उनके पिता ने एक और दुकान खरीदकर ऑडियो कैसेट और टेप रिकॉर्डर का काम शुरू किया तो गुलशन कुमार का मन भी इस काम में लगने लगा, वो शुरूआत में तो कैसेट्स और टेप-रिकॉर्डर बेचा करते थे लेकिन फिर उन्हें आइडिया आया कि क्यों ना वो भी म्यूजिक रिकॉर्ड करके खुद की कैसेट्स बनाये।
बस फिर क्या था गुलशन कुमार ने ऐसी जगहों पर जाना शुरू किया जहां भजन और पूजा-पाठ समारोह हुआ करते थे और वहां पर वो कैसेट रिकॉर्ड किया करते थे.. धीरे-धीरे काम बढ़ने लगा तो गुलशन ने दिल्ली में अपना खुद का स्टूडियो भी बनवा लिया। जिसका नाम उन्होंने ‘Super Cassettes Industries’ रखा।
जो भारत में सबसे बड़ी संगीत कंपनी बन गई। यहां तक कि गुलशन कुमार को इसके बाद कैसेट किंग भी कहा जाने लगा। उन्होंने इसी संगीत कंपनी के तहत टी-सीरीज की स्थापना की। अच्छा क्या आपको मालूम है कि टी-सीरिज में टी का मतलब क्या है ? या आपने कभी इसके बारे में सोचा है। खैर शायद ही किसी ने इसपर ध्यान दिया हो लेकिन हम आपको बता दें कि टी-सीरिज में टी का मतलब है त्रिशूल.. क्योंकि गुलशन कुमार खुदको शिव जी का बहुत बड़ा भक्त मानते थे ऐसे में उन्होंने अपनी कंपनी त्रिशुल सीरिज की शुरूआत की।
धीरे-धीरे वो अपने भजन और गीतों के चलते प्रसिद्ध होने लगे, तो उन्होंने अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए मुंबई शिफ्ट होने का फैसला लिया। मुंबई आने के बाद गुलशन कुमार की मुलाकात संगीत से जुड़ी कई बड़ी हस्तियों से हुई। जिनमें अनुराधा पौडवाल, नदीम-श्रवण, कुमार सानू, उदित नारायण और सोनू निगम जैसे गायकों के नाम शामिल हैं। इसके बाद टी-सीरीज को पहला ब्रेक मिला साल 1988 में, जब फिल्म कयामत से कयामत तक.. के म्यूजिक एलबम्स की 80 लाख कैसेट मार्केट में बिके थे। वहीं 1990 में रिलीज हुई फिल्म आशिकी के म्यूजिक ने तो सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिए।
बस इसके बाद करीब एक दशक तक म्यूजिक की दुनिया में टी-सीरिज का नाम लोकप्रिय रहा। मगर ये वो दौर था जब फिल्म इंडस्ट्री में अंडरवर्ल्ड का दबदबा तेजी से बढ़ रहा था। दाऊद इब्राहिम से लेकर छोटा राजन तक अंडरवर्ल्ड के सभी डॉन फिल्मी दुनिया पर अपना कब्जा जमाना चाह रहे थे। और तो और ये सब कुछ जग जाहिर था, रियल स्टेट चरमरा चुका था वहीं अब फिल्म इंडस्ट्री के लोग अंडरवर्ल्ड के निशाने पर थे।
गुलशन कुमार की हत्या में भी अंडरवर्ल्ड का हाथ था। दरअसल, कहानी शुरू हुई 1997 में जब नदीम सैफी ने अपनी एक एल्बम लॉन्च की, जिसका नाम था हाय अजनबी। नदीम चाहता था कि गुलशन कुमार उस एल्बम के कॉपी राइट्स खरीदकर इसे प्रमोट करें, लेकिन गुलशन को नदीम की आवाज़ पसंद नहीं थी जिसके चलते पहले तो उन्होंने इससे साफ इंकार कर दिया लेकिन बाद में नदीम के कहने पर वो मान गए और एल्बम के कॉपीराइट्स खरीदकर प्रमोट भी किया।
हालांकि एल्बम नहीं चली और बुरी तरह फ्लॉप हुई। जिसका दोष नदीम ने गुलशन को दिया, नदीम को लगता था कि गुलशन ने एल्बम का ठीक से प्रमोशन नहीं किया इसलिए वो फ्लॉप हो गई। इसी बात पर दोनों के बीच बहस हुई और नदीम ने गुलशन को देने लेने की धमकी दे डाली। इसके बाद 5 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार के पास अंडरवर्ल्ड डॉन अबु सलेम का कॉल आया, जिसपर सलेम ने कहा कि ‘वैष्णो देवी में रोज़ लंगर खिलते हो, कुछ हमें भी खिलाओ’ और सलेम ने गुलशन से 10 करोड़ रूपये की मांग कर दी।
हालांकि गुलशन कुमार ने पैसे देने से मना कर दिया, तो अबु सलेम ने बात-बात में कहा कि तुमने नदीम की एल्बम प्रमोट क्यों नहीं की, तो गुलशन कुमार ने जवाब दिया कि नदीम की आवाज़ अच्छी नहीं थी इसलिए एल्बम फ्लॉप हुई। इसके बाद 9 अगस्त को फिर अबु सलेम ने कुमार को फोन कर कहा कि तुमने अभी तक पैसों का इंतजाम नहीं किया। तुम अंडरवर्ल्ड को हल्के में ले रहे हो। अब आगे जो होगा उसकी जिम्मेदारी तुम्हारी होगी।

हैरानी की बात ये थी कि इन सारी धमकियों के बाद भी गुलशन कुमार पुलिस के पास नहीं गए, उन्हें लगता था कि इसमें पुलिस कुछ नहीं कर सकती। जबकि उसी दौरान ऐसी धमकियां राजीव राय और सुभाष घई को भी मिल रही थीं। लेकिन पुलिस ने दोनों को प्रोटेकशन दी और इसी कारण दोनों की जान बच गई। वहीं 12 अगस्त को अबू सलेम ने अपने साथियों के साथ मिलकर गुलशन कुमार की हत्या कर दी।
इसके बाद इंडिया टुडे के एक रिपोर्टर ने अंडरवर्ल्ड के डॉन छोटा राजन से बात की थी जिसने बताया कि गुलशन कुमार की हत्या में सलेम का हाथ था। वहीं उसने बताया कि ये सब दाऊद के इशारे पर हो रहा है। बाद में जब पुलिस ने जांच शुरू की तो सामने आया कि मई 1997 में दुबई में अनीस इब्राहिम के ऑफिस में एक मीटिंग हुई थी। अनीस इब्राहिम दाऊद इब्राहिम का छोटा भाई था। इस मीटिंग में अनीस के अलावा अबु सलेम और एक और गैंगस्टर शामिल थे। जिन्होंने तय किया था कि गुलशन कुमार को मारकर इंडस्ट्री के लिए एक नजीर पेश की जाएगी।जिसके लिए इन्होंने तीन लोगों को हायर किया था।
इस तरह अबु सलेम, नदीम सैफी के अलावा गुलशन कुमार की हत्या की चार्जशीट में कुल 19 आरोपियों के नाम शामिल थे। जिसमें एक नाम टिप्स कंपनी के मालिक रमेश तौरानी का भी था। पुलिस ने दावा किया था कि रमेश ने गुलशन की मौत के लिए 25 लाख की सुपारी दी थी। लेकिन जब 2002 में इस केस पर पहली बार फैसला आया तो रमेश के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला और उसे बेगुनाग माना गया। जबकि नदीम सैफी तब तक मुंबई छोड़कर लंदन चला गया और वहां की नागरिकता लेकर कभी भारत नहीं लौटा।
दूसरी ओर अबू सलेम को 2005 में पुर्तगाल से भारत लाया गया था। लेकिन उसपर गुलशन कुमार की हत्या का केस नहीं चल सका क्योंकि भारत और पुर्तगाल के बीच समझौते की शर्त के तहत अबू सलेम पर सिर्फ वही केस चलेंगे जिनपर दोनों देशों के बीच सहमति बनी हो और इस लिस्ट में गुलशन कुमार की हत्या का केस नहीं था। जिसके चलते जब भी गुलशन कुमार के केस में सुनवाई हुई तब अबू सलेम को अब्सेंट माना गया। जबकि वो कुछ ही दूर मुंबई की आर्थर रोड जेल में बंद था।
वहीं इस केस में आखिरी फैसला साल 2021 में आया था। इस फैसले के तहत हत्या में शामिल दो आरोपियों को उम्रकैद की सजा दी गई। वहीं फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि गुलशन कुमार की हत्या को अबुल सलेम और नदीम सैफी के कहने पर अंजाम दिया गया था। लेकिन कुछ कारणों के चलते दोनों पर ही केस नहीं चल सका। इसलिए इस केस में कुमार साहब को कितना इंसाफ मिला है कितना नहीं? ये तो नहीं कहा जा सकता। मगर इतना जरूर है कि गुलशन कुमार की लेगेसी आज भी वैसे ही जिंदा है और आज भी टी-सीरीज संगीत की दुनिया का सबसे बड़ा नाम है।