भारत में शायद ही कोई होगा जिसे हरित क्रांति के बारे में ना मालूम हो। वो क्रांति जिसने भारत को खाद्यान्न उत्पादन के मामले ना केवल आत्मनिर्भर बनाया। बल्कि देश के किसानों को कृषि की एक नई राह भी दिखाई। अब जो लोग हरित क्रांति के बारे में जानते हैं, उन्हें ये भी मालूम होगा कि एम. एस. स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक कहा जाता है। उनकी वजह से भारत में हरित क्रांति आई थी। लेकिन बहुत कम लोग हैं जिन्हें हरित क्रांति के शिल्पकार या राजनीतिक वास्तुकार कहे जाने वाले चिदंबरम सुब्रमण्यम के बारे में पता हो। हरित क्रांति में उनकी अहम भूमिका और भारतीय कृषि के बदलाव में उनके योगदान को आज उनकी जयंती पर याद करते हुए भारतिका पर हम आपको बताएंगे भारत के पूर्व कृषि मंत्री चिदंबरम सुब्रमण्यम के बारे में।
कौन थे चिदंबरम सुब्रमण्यम ?
30 जनवरी 1910 को तमिलनाडु के एक छोटे से गांव सेनगुत्तिपलायम में जन्में चिदंबरम सुब्रमण्यम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चेन्नई स्थित प्रेसीडेंसी कॉलेज से पूरी की। बीएससी में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने मद्रास लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। इसी दौरान उनके अंदर समाज सेवा और स्वाधीनता की भावना जागृत हुई। हालांकि उनके जीवन में बड़ा बदलाव तब आया, जब वो महात्मा गांधी के सवज्ञा आंदोलन का हिस्सा बने। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। लेकिन उनके इरादे बिल्कुल पक्के रहे। भारत की आजादी के बाद सुब्रमण्यम को संविधान सभा का सदस्य बनाया गया। साथ ही उन्होंने संविधान के निर्माण में भी अपनी भूमिका बखूबी निभाई। इसके बाद वर्ष 1952 से लेकर 1962 तक उन्होंने राजाजी और के. कामराज के नेतृत्व में तमिलनाडु के शिक्षा, कानून एवं वित्त मंत्री के तौर पर कारभार संभाला। 1962 में उन्हें लोकसभा के लिए चुना गया और केंद्रीय इस्पात एवं खनन मंत्री का पद सौंपा गया। इसके बाद चिदंबरम केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय खाद्य एवं कृषि मंत्री चुने गए। वहीं 1979 में चौधरी चरण सिंह की सरकार में चिदंबरम सुब्रमण्यम ने भारत के रक्षा मंत्री का पद ग्रहण किया। इसके बाद 1990 में वो महाराष्ट्र के राज्यपाल बने।
हरित क्रांति में सुब्रमण्यम की भूमिका
60-70 के दशक में जब भारत भयानक खाद्यान संकट से गुजर रहा था। उस समय देश में खाद्यान्न की आपूर्ति दूसरे देशों से अनाज आयात कर की जा रही थी। लेकिन जब सुब्रमण्यम को भारत का कृषि मंत्री बनाया गया, तो उन्होंने देश के किसानों से खेती में वैज्ञानिक पद्धति अपनाने का आग्रह किया। दरअसल, अमेरिकी वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग द्वारा विकसित मैक्सिकन गेहूं की किस्म की पहचान करने वाले एम.एस स्वामीनाथन थे। मगर भारत में इस किस्म के उत्पादन को मंजूरी सुब्रमण्यम के कारण ही मिली। उस समय चिदंबरम सुब्रमण्यम को एम.एस स्वामीनाथन द्वारा की गई रिसर्च और फैसले पर भरोसा था। लेकिन किसानों, राष्ट्रवादियों, किसान यूनियनों और उस समय के राजनीतिक नेताओं को मैक्सिकन गेहूं की इस किस्म पर बिल्कुल विश्वास नहीं था। ऐसे में किसानों का विश्वास जीतने के लिए और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए सुब्रमण्यम ने 1966 में अपने दिल्ली स्थित घर में क्रिकेट पिच और बगीचे को खोदकर वहां इस नई किस्म के गेहूं की बुआई की। ये बीज उच्च उपज देने के साथ रोगी प्रतिरोधी क्षमता भी रखता था। इसके लिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को भी भारत में इस बीज को लाने के लिए मनाया। बाद में उनके इस फैसले के कारण ही भारत में हरित क्रांति आई एवं देश को खाद्यान्न संकट से निजात मिल सका।
90 वर्षीय सुब्रमण्यम का 7 नवंबर 2000 में निधन हो गया। हालांकि आज उन्हें हरित क्रांति के वास्तुकार या शिल्पकार के तौर पर याद किया जाता है। वहीं मैक्सिकन बीज के कारण कृषि क्षेत्र में आए बदलाव के कई दशकों बाद सुब्रमण्यम को 1998 में भारत सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।