सुप्रीम कोर्ट ने 15 अक्टूबर को एक अहम फैसला सुनाया है — अब दिल्ली-NCR में ग्रीन पटाखे बेचना और फोड़ना मुमकिन होगा, लेकिन सिर्फ सीमित समय के लिए। कोर्ट ने कहा है कि ग्रीन पटाखों की बिक्री 18 से 21 अक्टूबर तक तय स्थानों पर ही होगी, जबकि इन्हें फोड़ने की अनुमति केवल दिवाली के दिन और उससे एक दिन पहले दी गई है। इन दोनों दिनों में भी समय निश्चित किया गया है — सुबह 6 से 7 बजे तक और रात 8 से 10 बजे तक, यानी कुल तीन घंटे। दरअसल, 10 अक्टूबर को हुई सुनवाई के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दे दिया था कि वह दिल्ली-NCR में ग्रीन पटाखों पर कुछ ढील दे सकता है, और अब वही ढील आधिकारिक रूप से मिल गई है।
अब सवाल उठता है कि आखिर ये ग्रीन पटाखे हैं क्या? ये सामान्य पटाखों से कैसे अलग हैं? और क्या ये पूरी तरह से सुरक्षित हैं?
ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों की तुलना में कम प्रदूषण फैलाते हैं। इनमें ऐसे रसायन या धातुएं नहीं होतीं जो वायु और स्वास्थ्य दोनों के लिए नुकसानदेह हों। इनसे निकलने वाला धुआं और शोर भी काफी कम होता है। इन्हें Council of Scientific and Industrial Research (CSIR) और National Environmental Engineering Research Institute (NEERI) ने विकसित किया है। फिलहाल देशभर में करीब 230 कंपनियों को ही इन्हें बनाने और बेचने की अनुमति है।
ग्रीन पटाखों के तीन मुख्य प्रकार हैं — SWAS, SAFAL और STAR
SWAS (Safe Water and Air Releaser) – ये पटाखे हवा में बेहद सूक्ष्म जलकण छोड़ते हैं जो धूल के कणों को सोख लेते हैं। इससे वायु प्रदूषण घटाने में मदद मिलती है।
SAFAL (Safe Minimal Aluminium) – इन पटाखों में एल्युमिनियम की मात्रा बहुत कम होती है, जिससे शोर और धुआं दोनों कम होता है।
STAR (Safe Thermite Cracker) – इनमें न तो पोटैशियम नाइट्रेट होता है और न सल्फर। इस वजह से इनसे धुआं और जहरीले तत्व बेहद कम निकलते हैं।
अनुमान है कि ग्रीन पटाखों से करीब 30% तक कम वायु प्रदूषण होता है। यानी ये पूरी तरह प्रदूषण-मुक्त नहीं हैं, लेकिन सामान्य पटाखों की तुलना में काफी सुरक्षित हैं। इनमें बेरियम नाइट्रेट, लेड और अन्य हैवी मेटल्स की मात्रा या तो बहुत कम होती है या बिल्कुल नहीं होती। याद रखिए, पारंपरिक पटाखों से जो हरा रंग और घना धुआं निकलता है, वो बेरियम नाइट्रेट की वजह से होता है — यह एक बेहद हानिकारक रसायन है जो फेफड़ों, आंखों और दिल पर बुरा असर डालता है। ग्रीन पटाखों में इस तत्व को या तो पूरी तरह हटा दिया गया है या इसकी मात्रा काफी घटाई गई है। आवाज़ के स्तर की बात करें तो साधारण पटाखे 160 से 200 डेसिबल तक शोर करते हैं, जबकि ग्रीन पटाखों की आवाज़ 100 से 130 डेसिबल तक सीमित रहती है।
अब सवाल यह कि पहचान कैसे करें कि कोई पटाखा सच में ग्रीन है या नहीं?
तो असली ग्रीन पटाखों पर CSIR–NEERI का हरा लोगो होता है और साथ ही QR कोड दिया जाता है। इसे स्कैन करने पर उस पटाखे की पूरी जानकारी मिल जाती है। आखिर में एक बात याद रखें कि पटाखा चाहे ग्रीन हो या नॉर्मल, प्रदूषण तो फैलाएगा ही। इसलिए अगर किसी को अस्थमा या सांस से जुड़ी समस्या है, तो उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए और भीड़ या धुएं वाले इलाकों से दूर रहना चाहिए।


