भारतीय इतिहास में अनेकों वीरांगनाओं ने जन्म लिया। जिनमें कईयों की बहादुरी के किस्से हर किसी की जुबां पर रहते हैं, तो कई वीरांगनाओं को इतिहास के पन्नों में भी जगह नहीं मिली। इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसी वीरांगना के बारे में बताएंगे, जिन्हें अंग्रेजों के खिलाफ जंग जीतने वाली पहली रानी के तौर पर भी जाना जाता है।
ये कहानी है 1772 में ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों ‘कलयार कोयिल युद्ध’ में अपने पति मुथु वदुग्नाथ पेरियाउदय थेवर और उनकी रियासत शिवगंगा (वर्तमान में तमिलनाडु) को खोने वाली रानी वेलु नचियार की। जिन्हें बचपन से ही घुड़सवारी, तीरंदाज़ी और मार्शल आर्ट के साथ ही अंग्रेज़ी, फ़्रांसीसी और उर्दू समेत कई भाषाओं का ज्ञान था। पति की मौत के बाद अंग्रेजों से अपना राज्य वापस लेने के लिए रानी वेलु ने कड़ी मशक्कत की। जिसके लिए वो शिवगंगा से लगभग 100 किलोमीटर दूर डिंडीगुल में हैदर अली से मुलाकात करने भी पहुंची। हालांकि इस मुलाकात से पहले उन्हें अपनी बेटी वेल्लाची के साथ अंग्रेजों से बचने के लिए बेबसों की तरह जंगल-जंगल तक घूमना पड़ा।
जब सारी मुसीबतों से बचकर रानी वेलु सुल्तान हैदर के पास पहुंची तो हैदर अली ने वेलु की कहानी और उनकी बहादुरी सुनकर उन्हें अपने महल में ना केवल पनाह दी बल्कि सम्मान के साथ उनके लिए अपने महल में एक मंदिर भी बनवाया। इतिहासकार आर. मणिकंदन की मानें तो हैदर अली अंग्रेजों के विरोधी थे। उन्हें शिवगंगा में ब्रिटेन उपनिवेशवाद को चुनौती देनी थी। जबकि वेलु को अपना राज्य दोबारा हासिल करने के लिए सैनिकों की आवश्यकता थी। ऐसे में दोनों के बीच इस मित्रता की नींव आपसी जरूरत के साथ पैदा हुई। अंग्रेजों के खिलाफ वेलु की इस लड़ाई में सहयोग देने के लिए हैदर ने उन्हें मासिक 400 पाउंड और हथियारों के साथ-साथ 5,000 पैदल सैनिकों और घुड़सवार दस्तों की मदद भी दी।
इस जंग में खास बात ये रही कि रानी वेलु ने महिलाओं की एक बड़ी सेना तैयार की। और इसे उन्होंने उडयाल सेना का नाम दिया। दरअसल, उडयाल रानी वेलु नचियार की भरोसेमंद अंगरक्षक थीं। ‘कलयार कोयिल युद्ध’ के समय रानी वेलु और उनकी बेटी को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए उडयाल ने अन्य दूसरी महिला सैनिकों के साथ पीछे रूकने का फैसला किया। जिन्हें बाद में आरकाट के सैनिकों ने अपने कब्जे में लिया। उनके ऊपर काफी अत्याचार किए, बावजूद इसके उडयाल ने नवाब आरकाट को रानी के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। अंत में नवाब ने उडयाल का सिर, धड़ से अलग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया।
अगस्त 1781 में वेलु नचियार ने अपनी उडयाल सेना और हैदर अली की मदद से आखिरकर शिवगंगा को अंग्रेजों से आजाद करा लिया और इस तरह वेलु नचियार, ब्रिटिश औपनिवेशिक शक्ति के खिलाफ़ जंग जीतने वाली भारत की पहली रानी बन गईं। उन्होंने करीब 10 सालों तक शिवगंगा पर शासन किया और अपनी बेटी को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
1796 में रानी नचियार का निधन हो गया और उनकी वीरगाथा हमेशा के लिए अमर हो गई।