महाशिवरात्रि के पर्व पर पाकिस्तान में भी भोले शंकर का नाम गूंजने वाला है। पाकिस्तान में महाशिवरात्रि त्योहार समारोह में शामिल होने के लिए 62 भारतीय हिंदू तीर्थयात्री बुधवार (6 मार्च) को वाघा बॉर्डर के रास्ते भारत से लाहौर पहुंचे। इवेक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के प्रवक्ता आमिर हाशमी ने इस बारे में बात करते हुए जानकारी दी। आमिर हाशमी ने बताया,‘‘महाशिवरात्रि समारोह में भाग लेने के लिए कुल 62 हिंदू तीर्थयात्री बुधवार को भारत से लाहौर पहुंचे हैं।” ईटीपीबी द्वारा आयोजित महाशिवरात्रि का मुख्य समारोह 9 मार्च को लाहौर से लगभग 300 किलोमीटर दूर चकवाल में ऐतिहासिक कटास राज मंदिर (Katas Raj Mandir) में आयोजित किया जाएगा।
प्रवक्ता ने आगे बताया कि इस समारोह में विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक नेता भी शामिल होंगे। उनके मुताबिक, वाघा में धार्मिक स्थलों के अतिरिक्त सचिव राणा शाहिद सलीम ने विश्वनाथ बजाज के नेतृत्व में पाकिस्तान आए हिंदू यात्रियों का स्वागत किया।
शिवरात्रि समारोह के लिए पाकिस्तान पहुंचे ये श्रद्धालु 10 मार्च को कटास राज मंदिर से वापस लाहौर लौटेंगे। 11 मार्च को वह लाहौर के कृष्ण मंदिर, लाहौर किला और लाहौर के दूसरे ऐतिहासिक स्थानों का दौरा भी करेंगे और 12 मार्च को अपने वतन भारत वापस लौट आएंगे।
पाकिस्तान के कटास राज मंदिर का महत्व
पाकिस्तान के कटास राज मंदिर का इतिहास लगभग 5000 साल पुराना है। माना जाता है कि भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर महाभारत काल यानी (त्रेतायुग) में भी था। कटास राज मंदिर से पांडवों का भी एक गहरा नाता जोड़ा जाता है। यह मंदिर पाकिस्तान के चकवाल जिले से लगभग 40 किलोमीटर दूर है।
मंदिर के इतिहास के बारे में बताया जाता है कि जिस तालाब के चारों ओर यह मंदिर बना है, वह भगवान भोलेनाथ के आंसुओं से भरा है। कटासराज मंदिर के इस तालाब को कटाक्ष कुंड के नाम से जाना जाता है।
कटाक्ष कुंड के निर्माण के पीछे भी एक कहानी है। कहा जाता है कि भगवान शिव अपनी पत्नी सती के साथ इसी स्थान पर रहते थे। लेकिन जब देवी सती की मृत्यु हो गई, तब भगवान भोलेनाथ उन के दुःख में इतना रोए कि उनके आंसुओं से दो तालाब बन गए। जिसमें से एक तालाब (कुंड) राजस्थान के पुष्कर नामक तीर्थ पर है और दूसरा यहां कटासराज मंदिर में। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।