राजस्थान के कोटपुतली के कीरतपुर गांव के रहने वाले प्रगतिशील किसान कैलाश चौधरी, बीते करीब 6 दशकों से खेती करते आ रहे हैं। हालांकि उनके जीवन में बड़ा बदलाव तब आया, जब उन्होंने अपनी खेती में बदलाव करने का मन बनाया। परंपरागत खेती से जैविक खेती की ओर रूख करने वाले कैलाश चौधरी को हमेशा से ही कुछ नया और अलग करने की चाह थी। वो बाकी किसानों की तरह भीड़ में नहीं चलना चाहते थे। इसलिए उन्होंने साल 1995 में जैविक पद्धति से खेती करना शुरू किया।
कैलाश जी के अनुसार, जब कोटपुतली में पहली बार कृषि विज्ञान केंद्र खुला तो वो सीधा जाकर कृषि वैज्ञानिकों के साथ जुड़ गए। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर ही उन्होंने जैविक खेती में हाथ आजमाया। इस दौरान उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से अपने खेतों में ही हरी खाद, जीवामृत और कीटप्रतिरोधक आदि बनाना सीखा। हालांकि सामान्य फसलों की खेती से उन्हें ज्यादा लाभ नहीं हो रहा था। जिसके चलते उन्होंने बागवानी की तरफ रूख किया।
साल 1998 में कृषि विज्ञान केंद्र से उन्हें 80 आंवला के पौधे दिए गए। उन्होंने इन पौधों को अपने खेतों में लगाकर पूर्ण जैविक तरीके से खेती की। जिनमें से करीब 60 पेड़ 3 सालों में फल भी देने लगे।
हालांकि जब उनके पेड़ों ने पहली बार फल दिए, तो वो बड़ी ही उत्सुकता से मंड़ी आंवला लेकर पहुंचे। मगर अफसोस की उन्हें कोई खरीददार नहीं मिला। कई दिनों तक वो बार-बार मंडी फल लेकर जाते रहे मगर कुछ ही दिन में उनके सभी आंवला खराब हो गए। उन्हें काफी नुकसान भी उठाना पड़ा। लेकिन अपनी लगन और जज्बे के कारण किसान कैलाश चौधरी ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने इस समस्या को गहराई से समझने की कोशिश की और इसका हल तलाशने के लिए वो उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ पहुंचे। यहां उन्होंने देखा कि कई महिलाएं आंवले से तरह-तरह के खाद्य उत्पाद तैयार कर रही थी।
इसे देखने के बाद ही उन्होंने पहले खुद प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग हासिल की। और फिर खुदकी प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने का मन बनाया। साल 2002 से उन्होंने स्वयं आंवले के उत्पाद तैयार करना शुरू दिया। और बाजार के लिए वो कोटपुतली से जयपुर पहुंच गए। यहां उन्होंने पंत कृषि भवन में अपना स्टॉल लगाया। धीरे-धीरे कुछ लोगों ने उनके उत्पादों का स्वाद चखा तो उन्हें पसंद आने लगा।
वाकई में कैलाश चौधरी के आंवले से बने उत्पादों का स्वाद इतना स्वादिष्ट था कि लोग हाथों-हाथ उनसे खरीद करने लगे। बस इसके बाद सफल किसान कैलाश चौधरी ने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। मार्केटिंग के मामले में भी कैलाश चौधरी का हाथ कोई नहीं पकड़ सकता। उन्हें आज पूरे राजस्थान में जैविक खेती और रूरल मार्केटिंग का गुरू तक माना जाता है। वो अपने ब्रांड नेम वेदांता के तहत लड्डू, कैंडी से लेकर मुरब्बा, जूस और आंवले का पाउडर जैसे कई उत्पाद तैयार कर रहे हैं।
आधुनिक खेती के अलावा कैलाश चौधरी अभी तक लगभग 5 हजार से ज्यादा किसानों को जैविक खेती व इसके मार्केटिंग में प्रशिक्षित भी कर चुके हैं। जैविक तरीके से आंवले की खेती कर लाभ कमा रहे किसान कैलाश चौधरी आज के वक्त में ना सिर्फ लाखों-करोड़ों में कमाई कर रहे हैं बल्कि कई लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।